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समाधिमरण
लेकर दस तक की संख्या वाले पदार्थों का उल्लेख किया गया है। संख्या- क्रम से जीव, पुट्रल आदि की स्थापना की गई है।
स्थानांग दस अध्ययनों में विभक्त है। प्रत्येक अध्ययन में प्रत्येक विषयों का वर्णन संख्या की सहायता से किया गया है। उदाहरणस्वरूप प्रथम अध्ययन में प्रत्येक प्रतिपाद्य विषय के लिए जहाँ एक संख्या का प्रयोग मिलता है, वहीं दशम अध्ययन में दम संख्या. का।
द्वितीय अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक में समाधिमरण की चर्चा मिलती है। इसमें मृत्य (मरण) के विविध प्रकार, समाधिमरण के दो रूप भक्त प्रत्याख्यान और प्रायोपगमनमरण का विवरण उपलब्ध है। मरण के विविध प्रकारों का वर्णन जोड़े बनाकर किया गया है, जैसे- बलन्मरण-वशार्तमरण, निदानमरण-तद्भवमरण, गिरिपतनमरण-तरुपतनमरण, जलप्रवेशमरण-अग्निप्रवेशमरण, विषभक्षणमरण-शस्यावपाटनमरण, वैहायसमरणगिद्धपट्ठमरण या गृद्धस्पृष्टमरण, भक्तप्रत्याख्यानमरण- प्रायोपगमनमरण। भक्तप्रत्याख्यान एवं प्रायोपगमनमरण के निर्दारिम एवं अनि रिम दो रूपों पर भी विचार किया गया है। समवायांग
बारह अंगों में समवायांग का स्थान चौथा है। आचार्य अभयदेव ने इस आगम को समवाय या समवाओ कहा है। आचार्य नेमिचन्द्र के अनुसार इसमें जीव आदि पदार्थों का सादृश्यसामान्य से निर्णय लिया गया है। अतः इसका नाम 'समवाय' है।
समवायांग में १०० समवाय हैं। इसका वर्तमान उपलब्ध पाठ १६६७ श्लोक परिमाण का है। समाधिमरण का विवरण मुख्यरूप से सत्तरहवें समवाय में मिलता है। इस समवाय में सत्तरह प्रकार के असंयमों का वर्णन करते हुए मरण के सत्तरह प्रकारों पर प्रकाश डाला गया है। इसी में समाधिमरण की भी चर्चा की गयी है। मरण के सत्तरह प्रकार निम्न हैं: - (१) अवीचिमरण (२) अवधिमरण, (३) आत्यन्तिकमरण, (४) वलन्मरण, (५) वशार्तमरण, (६) अन्तःशल्यमरण, (७) तद्भवमरण, (८) बालमरण, (९) पंडितमरण, (१०) बाल पंडितमरण, (११) छद्मस्थमरण, (१२) केवलिमरण, (१३) वैहायसमरण, (१४) गृद्धस्पृष्टमरण, (१५) भक्तप्रत्याख्यानमरण, (१६) इंगिनीमरण, (१७) पादपोपगमनमरणा इस प्रकार इस समवाय से मरण के विविध रूपों के स्वरूप विदित हो जाते हैं।
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