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समाधिमरण
में मृत्युवरण करने का भी समर्थन किया है। उदाहरणस्वरूप ईसाई धर्म-ग्रन्थों में उन स्त्रियां की अत्यधिक प्रशंसा की गई है, जिन्होंने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए अपना देहत्याग किया था। ईसाई धर्मगुरुओं ने उन स्त्रियों के आत्ममरण की प्रशंसा तो की ही है, साथ ही साथ उन्होंने उनके साथ दयालुता का प्रदर्शन भी किया है एवं उन्हें बहुत ही उच्च स्थान प्रदान किया है। उन्हें सन्तों की श्रेणी में रखकर उनके प्रति असीम आदर के भाव का प्रदर्शन भी किया है।
उपर्युक्त चिन्तन के आधार पर समाधिमरण और ईसाई धर्म के मृत्युवरण में पाए जानेवाले अन्तर पर प्रकाश डाला जा सकता। समाधिमरण में जहाँ स्पष्ट रूप से इस बात पर जोर डाला गया है कि मृत्युवरण व्यक्ति अनशनपूर्वक करता है, वहीं ईसाई धर्म में मृत्युवरण के लिए किसी तरह का स्पष्ट निर्देश नहीं है। इसमें व्यक्ति के ऊपर ही यह छोड़ दिया गया है कि वह मृत्युवरण के लिए कौन-सा मार्ग अपनाए। अतः इस दृष्टि से समाधिमरण और ईसाई धर्म के मृत्युवरण में काफी अन्तर पाया जाता है।
लेकिन परिस्थितियाँ जिनके कारण व्यक्ति देहत्याग करता है पर विचार किया जाए तो दोनों में काफी समानताएँ हैं। क्योंकि ईसाई धर्म में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि व्यक्ति विपरीत परिस्थितियों में, धर्म की रक्षा के लिए, सतीत्व की रक्षा के लिए ही देहत्याग कर सकता है तथा अन्य साधारण परिस्थितियों में उसे मृत्युवरण करने का अधिकार नहीं है। समाधिमरण भी इन्हीं परिस्थितियों में किया जाता है।
ईसाई धर्म में कभी-कभी मृत्युवरण के लिए बाह्य विधियों का भी सहारा लिया जाता है। इस दृष्टि से यह समाधिमरण से कुछ भिन्न अवश्य है, लेकिन हमें यहाँ यह नहीं भूलना चाहिए कि कुछ असाधारण परिस्थितियों में जैनधर्म में भी सत्त्वर विधियों का आलम्बन लेकर देहत्याग किया जाता है।
ईसाई धर्म पर यह भी एक आक्षेप लगाया जा सकता है कि इस धर्म में जितन भी मृत्युवरण के उदाहरण हैं, उनमें से अधिकतर उद्देश्यपूर्ण हैं; जैसे-स्वर्ग प्राप्ति का उद्देश्य, किसी मनोभाव से दूर होने का उद्देश्य तो किसी रोग से होनेवाले कष्टों से बचने का उद्देश्य है, लेकिन बहुत से ऐसे भी उदाहरण हैं जिनमें यह स्पष्ट है कि व्यक्ति ऐसे किसी उद्देश्य के वशीभूत न होकर मात्र निर्वाण प्राप्ति की भावना से ही आत्ममरण किया है। अत: इन उदाहरणों को देखते हुए ईसाई धर्म के मृत्युवरण को मात्र उद्देश्यपरक नहीं कहा जा सकता है।
अन्त में निष्कर्ष के रूप में यही कहा जा सकता है कि समाधिमरण और ईसाई
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