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समाधिमरण से पतित होने की संभावना हो। इन सारी परिस्थितियों पर स्वयं व्यक्ति को ज्ञानपूर्वक सोच विचार करना चाहिए तथा उपयुक्त और अनुपयुक्त विवेक का अनुपालन करते हुए समाधिमरणपूर्वक देहत्याग को स्वीकार करना चाहिए। समाधिमरण के पर्यायवाची शब्द
जैन विचारकों ने समाधिमरण पर विस्तार से चर्चा किया है। उन्होंने समाधिमगण को भिन्न-भिन्न नामों से पुकारा है, उदाहरणस्वरूप-संलेखना, संथारा, पण्डितमरण, सकाममरण, अन्त:क्रिया, उत्तमार्थ, उद्युक्तमरण आदि। उपर्युक्त सभी नाम समाधिमरण के
ही पर्यायवाची हैं। इनका अर्थ निम्नलिखित ढंग से स्पष्ट किया जा सकता है। • संलेखना
संलेखना शब्द सम् + लेखना से मिलकर बना है। सम का अर्थ होता है- सम्यक प्रकार से या ठीक से अथवा उचित रीति से और लेखना से तात्पर्य है- कृश या क्षीण करना। दूसरे शब्दों में सम्यक प्रकार से काय (शरीर) और कषाय को क्षीण करना या कृश करना संलेखना है। मृत्यु के समय विशेष साधना के द्वारा शरीर और रागादि दोषों तथा उनके कारणों को क्षीण करते हुए प्रसत्रतापूर्वक बिना किसी दबाव के समभाव से जो दहत्याग किया जाता है, वह संलेखना है। संथारा
संथारा या संस्तारक का अर्थ होता है- शय्या या बिछावन।१८ संल्लेखना में मृत्यु के आगमन की प्रतीक्षा के लिए व्यक्ति जो संस्तारक ग्रहण करता है, उसे ही संथारा कहा जाता है। वस्तुत: यह मृत्यु शय्या पर आरूढ़ होना है। आहारादि का त्याग कर तथा सम्यक् शय्या या संस्तारक ग्रहण कर शान्त चित्त से एक स्थान पर रहकर आनेवाली मृत्यु की समत्वभाव से प्रतीक्षा करना ही संथारा है। बिछावन या संस्तारक के रूप में व्यक्ति तृणशय्या, काष्ठफलक या कभी-कभी मात्र भूमि ही ग्रहण करता है। शय्या किस तरह की ग्रहण की जाए यह व्यक्ति की योग्यता तथा सहनशीलता के ऊपर निर्भर करता है। समाधिमरण
समाधिमरण समाधि +मरण इन दो शब्दों के योग से बना है। समाधि का अर्थ है- चित्त या मन की शान्त अवस्था और मरण का अर्थ है- देह का त्याग । मन में उत्पन्न
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