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समाधिमरण का व्यवहार पक्ष
१४७ अनप्रेक्षाओं का उल्लेख किया गया है। भावनायें निम्न हैं.०९ (१) अनित्य-भावना, (२) अशरण-भावना, (३) संसार-भावना, (४) एकत्व-भावना, (५) अन्यत्व-भावना, (६) अचि -भावना, (७) आस्रव-भावना, (८) संवर-भावना, (९) निर्जरा-भावना, (१०) लोक-भावना, (११) धर्म-भावना, (१२) बोधिदुर्लभ-भावना । इन बारह भावनाओं की विस्तृत चर्चा करने के पूर्व हमें भाव और भावना के अंतर को समझ लेना होगा। भाव
और भावना ये दो शब्द हैं। भाव एक विचार है, मन की तरंग है। वह जल के बूंद की तरह है। जब भाव प्रवाह रूप में प्रवाहित होता है, तब वह भावना के रूप में परिणत होता है। भावना में अखण्ड प्रवाह होता है, जिससे मन में संस्कार स्थायी हो जाते हैं। भाव पूर्व रूप है, तो भावना उत्तर रूप है। अत: हम कह सकते हैं कि भाव बीजरूप है,जबकि भावना उससे विकसित वृक्षा भावना मनुष्य के विचारों को परिष्कृत करने की प्रणाली है जो सुस्थिर संस्कार का निर्माण करती है। समाधिमरण जैन साधना का एक प्रतिरूप है जिसके द्वारा आत्मा में गहरे पड़े हुए विकृत संस्कारों का शोधन कर उन्हें परिष्कृत किया जाता है, ताकि मनुष्य अपने ममत्वभाव को अल्प कर सके। अनित्य-भावना
___ संसार के सभी पदार्थों को अनित्य एवं नाशवान मानना अनित्य-भावना है। धन, सम्पत्ति, अधिकार, वैभव ये सब क्षणभंगुर हैं, कालक्रम हैं। कालक्रम से संसार के समस्त पदार्थों में परिवर्तन होता रहता है। पदार्थ का जो स्वरूप प्रात:काल था, वह मध्याह्नकाल में नहीं रहता और जो मध्याह्नकाल में था वह अपराह्नकाल में नहीं रहता है। आचार्य कुन्दकुन्द के शब्दों में समग्र सांसारिक वैभव, इन्द्रियाँ, रूप-यौवन, बल, आरोग्य- सभी इन्द्रधनुष के समान क्षणिक हैं, संयोगजन्य हैं इसलिए व्यक्ति को समग्र सांसारिक उपलब्धियों की अनित्यता एवं संयोगजन्यता को समझकर उनके प्रति आसक्त नहीं रहना चाहिए।११०
उत्तराध्ययन में लिखा है कि व्यक्ति का यह शरीर अनित्य है, अपवित्र है और अशुचि से इसकी उत्पत्ति हुई है। इसमें जीव का निवास भी अशाश्वत ही है । यह शरीर दुःख एवं क्लेशों का भाजन है, अर्थात् यह शरीर स्वभाव से ही अनित्य है। इस शरीर की अपेक्षा से जीव भी अशाश्वत, अनित्य है। शारीरिक एवं मानसिक जितने भी क्लेश हैं, वे सभी इस शरीर के आश्रय से ही हैं।१११ अत: व्यक्ति को इस शरीर के प्रति होनेवाले ममत्वभाव का त्याग करना चाहिए। मरणविभक्ति में अनित्य भावना पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि देव, सुर-असुर, सिद्धि-ऋद्धि, माता-पिता, मित्र-शत्रु, पुत्र-पत्नी, भवन-उपवन, यान-वाहन, बल-वीर्य, रूप-यौवन, देह आदि सब कुछ अनित्य है।११२ भगवती आराधना के अनुसार व्यक्ति का शरीर फेन के बुलबुले के समान है। जिस प्रकार
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