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________________ १३८ समाधिमरण कम से कम एक पोषध अवश्य करना चाहिए। व्यक्ति को संयम और तप का अभ्यास करके कषयों से रहित हो जाना चाहिए अर्थात व्यक्ति को काम, क्रोध आदि कषाय से मुक्त हो जाना चाहिए।६० कहने का तात्पर्य यह है कि सत्तरह प्रकार के संयम और बाहर प्रकार के तप (भावना) जो शास्त्रों में वर्णित हैं उनका सम्यक् रूप से अनुष्ठान करना चाहिए, क्रोधादि चतुर्विध कषायों से मुक्त हो जाना चाहिए। जब मरण काल आ जाए तो गुरुजनों के समीप जाकर मृत्यु के भय को अपने हृदय से सर्वथा दूर करके अनशन के द्वारा शरीर-भेद अर्थात् देहपतन की प्रतीक्षा करनी चाहिए।६१ मृत्यु के समय व्यक्ति के मन में उत्साह, प्रसन्नता आदि का भाव रहना चाहिए तथा अनशन करने के पीछे यह भावना नहीं रहनी चाहिए कि इससे मैं शीघ्र मृत्यू को प्राप्त कर लूँगा। तात्पर्य है कि व्यक्ति मृत्यु के स्वागत के लिए सहर्ष तैयार हो जाए तथा मन में ऐसा विचार करे कि अनशन द्वारा ही यदि इस नश्वर शरीर का विनाश होना है तो यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है। काल की दृष्टि से समाधिमरण को तीन कोटियों में बांटा गया है६२. उत्कृष्ट, मध्यम और जघन्य । उत्कृष्ट बाहर वर्ष का, मध्यम एक वर्ष का और जघन्य छह मास का होता है। द्वादश वर्षीय समाधिमरण की विधि द्वादश वर्षीय समाधिमरण के बाहर वर्षों में से प्रथम चार वर्षों में व्यक्ति दुग्ध आदि विकृतियों (रसों) का त्याग करता है तथा दूसरे चार वर्षों में विविध प्रकार के तप करता है।६३ फिर दो वर्षों तक एकान्तर तप (एक दिन उपवास और फिर एक दिन भोजन) करता है। भोजन के दिन आयाम-आचाम्ल करता है। उसके बाद ग्यारहवें वर्ष में पहले छह महिनों तक कोई भी अतिविकृष्ट (तेला, चोला आदि) तप नहीं करना चाहिए।६४ उसके बाद छह महीने तक विकृष्ट तप करना चाहिए। इस पूरे वर्ष में पारणे के दिन आचाम्ल करना चाहिए।६५ बारहवें वर्ष में एक वर्ष तक कोटि सहित अर्थात् निरन्तर आचाम्ल करके फिर मुनि को पक्ष या एक मास का आहार त्याग अर्थात् अनशन करना चाहिए।६६ मरणविभक्ति ___ मरणविभक्ति या मरणसमाहि नामक प्रकीर्णक में समाधिमरण पर विस्तार से चर्चा की गई है। इस प्रकीर्णक के अनुसार समाधिमरण लेने की विधि निम्नलिखित है इसके अनुसार समाधिमरण करने के लिए देह और कषाय दोनों को कृश किया जाता है। देह कृशीकरण को बाह्य समाधिमरण (सल्लेखना) तथा कषाय कृशीकरण को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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