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________________ समाधिमरण का व्यवहार पक्ष १३३ ६ शूल - मस्तक पीड़ा, अकारक - भोजन में अरुचि या भूख न लगना, अक्षिवेदना - आँख दुःखना, कर्ण - वेदना, कंडू - खुजली, उदर- रोग तथा कुष्ट ये सोलह भयानक रोग उत्पन्न कर दूँगा जिससे तुम आर्तध्यान तथा विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे | ऐसा देव ने बार-बार कहना प्रारम्भ किया। जब देव ने तीसरी बार यही बात दुहराई तब सुरादेव के मन में ऐसा विचार आया कि इसने मेरे तीनों पुत्रों को मार डाला और अब मेरे शरीर में सोलह प्रकार के भयानक रोग एक साथ उत्पन्न कर देना चाहता है। अतः मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस दुष्ट पुरुष को पकड़ लूँ। यह सोचकर वह उसे पकड़ने के लिए उठा । इतने में वह देव आकाश में उड़ गया। सुरादेव के हाथ में खम्भा आ गया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा । ३७ उसकी आवाज सुनकर सुरादेव की पत्नी आयी और पूछा कि क्या हुआ ? इस पर उसने अपने साथ घटी हुई घटनाओं को अपनी पत्नी को बताया । यह सब सुनने पर उसकी पत्नी बोली यह सब झूठ है। वह मायावी जाल था। अब आप अपने इस भूल के लिए प्रायश्चित कीजिए तथा अपनी उपासना में लग जाइए। सुरादेव ने प्रायश्चित के तत्पश्चात् समाधिमरण किया।३८ चुल्लशतक अपनी उपासना में मग्न रहता था । देव ने उसे उसकी साधना-पथ सेडिगाने के लिए उसके तीन पुत्रों को उसके सामने मार डाला। लेकिन तब भी चुल्लशतक अपनी उपासना में लगा ही रहा । ३९ इस पर देव ने चुल्लशतक से कहा " - अरे श्रमणोपासक चुल्लशतक! तुम अब भी अपने व्रतों को भंग नहीं करोगे तो मैं खजाने में रखी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं, व्यापार में लगी तुम्हारी छह करोड़ स्वर्णमुद्राओं तथा घर का वैभव और साज-समान में लगी छह करोड़ की स्वर्ण मुद्राओं को ले जाउँगा । ले जाकर उसे तिराहे, चौराहे, सड़कों, राजपथ आदि स्थानों पर बिखेर दूँगा । जिससे तुम आर्तध्यान एवं विकट दुःख से पीड़ित होकर असमय में ही जीवन से हाथ धो बैठोगे । देव ने चुल्लशतक से ऐसा बार-बार कहा । इस पर चुल्लशतक के मन में विचार आया कि इस पुरुष ने मेरे बेटों को मार डाला अब यह मेरा धन छीन लेगा और उसे लूटा देगा। इसलिए मेरे लिए यही श्रेयस्कर है कि मैं इस पुरुष को पकड़ लूँ। ऐसा विचार कर वह देव को पकड़ने के लिए उद्यत हुआ लेकिन देव तो अन्तर्ध्यान हो गया और उसके हाथ में सिर्फ खम्भा आया। इस प्रकार चुल्लशतक अपनी उपासना-मार्ग से हट गया। बाद में उसने अपनी भूल का प्रायश्चित कर समाधिमरण किया। *१ महाशतक का शरीर उग्र तपश्चरण के कारण अत्यन्त कृश हो गया था। उसने अन्तिम मरणान्तिक सल्लेखना स्वीकार की, खानपान का परित्याग किया, अनशन स्वीकार किया, मृत्यु की कामना न करता हुआ, वह आराधना में लीन हो गया और उसे अवधिज्ञान की प्राप्ति हो गयी। * २ तत्पश्चात् एक दिन महाशतक की पत्नी रेवती शराब के नशे में उन्मत्त बार-बार अपना वस्त्र (उत्तरीय) फेंकती हुई पोषधशाला में जहाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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