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समाधिमरण कामदेव अपनी समाधि-साधना में लीन था। उसकी समाधि को भंग करने के उद्देश्य से देव ने पिशाच का रूप धारण किया और कामदेव को धमकी दी कि यदि उसने अपना व्रत नहीं छोड़ा तो वह तलवार से उसके टुकड़े-टुकड़े कर देगा। लेकिन कामदेव अपनी साधना में लीन रहा। इस पर पिशाच ने तलवार से उसके शरीर के टुकड़े-टुकड़े कर डाला। कामदेव ने उस असह्य वेदना को समभावपूर्वक सहन किया और अपनी साधना-पथ पर अडिग रहा। इसके बाद पिशाचरूपी देव ने भयानक हाथी का रूप बनाया और कामदेव को अपनी सूढ़ तथा नुकीले दांतों से कष्ट देने लगा। इसे भी सहन करते हुए कामदेव अपनी साधना-पथ पर अडिग रहा।३१ अब पिशाचरूपी देव ने भयानक सर्प का रूप धारण करके कामदेव को अपनी नुकीले दांतों तथा विषों से आहत करने लगा, लेकिन कामदेव अपनी साधना पर अडिग रहा। अन्त में देव ने कामदेव से क्षमायाचना की और कामदेव ने समाधिमरण किया।३२
चुलनीपिता कठिन व्रत करते हुए अपना जीवन बिता रहा था। देव ने उसे उसकी साधना से हटाने के लिए उस पर उपसर्ग किया। सर्वप्रथम देव.ने उसके बड़े पत्र को उसके सामने ही तलवार से काटकर, उसके मांस रक्त को उबलते हुए तेल की कढ़ाही में खौलाया तथा उसे उसके ऊपर डाला। चुलनीपिता ने इस तीव्र वेदना को तितिक्षापूर्वक सहन किया।२३ जब देव ने देखा कि चुलनीपिता अपनी साधना-मार्ग से नहीं हट रहा है, तब उसने उसके अन्य दो पुत्रों के साथ भी बड़े लड़के जैसा ही व्यवहार किया। लेकिन तब भी चुलनीपिता दृढ़तापूर्वक अपनी साधना में रत ही रहा। अब देव ने क्रोध में आकर चुलनीपिता से कहा कि उसके पुत्र जैसा ही कृत्य वह उसकी माता के साथ भी करेगा। इस पर चूलनीपिता ने क्रोध और ममत्व में आकर देव को पकड़ना चाहा, लेकिन देव उसकी पकड़ में नहीं आया इस तरह चुलनीपिता का व्रत भंग हो गया। वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी माता आयी और उसने जब सारा वृत्तान्त सना तो चूलनीपिता को कहा कि यह तो माया थी। तुम्हारा व्रत भंग हुआ। तुम इसका प्रायश्चित्त करो। चुलनीपिता ने इसका प्रायश्चित करते हुए समाधिमरण ग्रहण किया।३४
सुरादेव अपनी उपासना में लीन रहता था। एकबार देव ने उसे उसकी उपासना से हटाना चाहा। उसके लिए देव ने उस पर उपसर्ग किया तथा उसके तीन पुत्रों का वध कर डाला। लेकिन सुरादेव अपनी साधना से 'अविचल रहा।२५ अब देव ने उसे उसकी उपासना से डिगाने के लिए बोला मृत्यु को चाहनेवाले श्रमणोपासक सुरादेव! यदि अपने व्रतों का त्याग नहीं करोगे तो आज मैं तुम्हारे शरीर में एक ही साथ श्वास-दमा, कासखांसी, ज्वर-बुखार, दाह-देह में जलन, कुक्षि-शूल-पेट में तीव्र पीड़ा, भगन्दर-गुदा पर फोड़ा, अर्श-बवासीर, अजीर्ण-बदहजमी, दृष्टिशूल-नेत्र में शूल चूभने जैसी पीड़ा, मूर्द्ध
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