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समाधिमरण का व्यवहार पक्ष
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आकस्मिक मृत्यु के कारण
प्राकृतिक एवं प्राणीकृत विपदाओं के कारण व्यक्ति की मृत्य होने की सम्भावना हो तो उसे समाधिमरण (सागारी संथारा) कर लेना चाहिए। सागारी संथारा या अविचार भक्तप्रत्याख्यानमरण (समाधिमरण) आकस्मिक मृत्यु का कारण उपस्थित होने पर ही किया जाता है। समाधिमरण लेनेवाले की योग्यता
समाधिमरण जैनधर्म में वर्णित समस्त तपों से उच्च और कठिन है। इसे सभी व्यक्ति नहीं कर सकते हैं। इसके लिए कुछ योग्ताएँ निर्धारित की गई हैं। जिनके पास ये योग्यताएँ रहती हैं वे ही समाधिमरण कर सकते हैं। जैन आगमों में समाधिमरण करनेवाले की योग्यता पर भी प्रकाश डाला गया है जो निम्न हैं - .
__उत्तराध्ययन में समाधिमरण लेनेवाले की योग्यता पर प्रकाश डालते हुए लिखा गया है.५ - संयमशील, जितेन्द्रिय और चारित्रयुक्त सकाम और अकाममरण के भेद जाननेवाला तथा मृत्यु के स्वरूप का ज्ञाता एवं मृत्यु से नहीं डरनेवाला व्यक्ति समाधिमरण के योग्य है।
मूलाचार के अनुसार- ममत्वरहित, अहंकाररहित, कषायरहित, धीर, निदानरहित, सम्यग्दर्शन से सम्पन्न, इन्द्रियों को अपने वश में रखनेवाला, सांसारिक राग को समझनेवाला, अल्प कषायवाला, इन्द्रिय निग्रह में कुशल, चारित्र को स्वच्छ रखने में प्रयासरत तथा संसार के समस्त दु:खों को जानकर तथा इसे समझकर इससे विरत रहनेवाला व्यक्ति समाधिमरण करने का अधिकारी होता है। भगवती आराधना के अनुसार चारों प्रकार के कषाय (क्रोध, मान, माया, लोभ) को कृश करनेवाला व्यक्ति समाधिमरण करने के योग्य है।
मरणविभत्ति के अनुसार २८ - शरीर और कषाय को क्षीण करनेवाला व्यक्ति समाधिमरण करने के योग्य है अर्थात विभिन्न प्रकार के तप, अनशन की सहायता से जिसने काय शरीर को दुर्बल बना लिया, अपनी कषायों को शुभध्यान और शुभ भावना का चिन्तन करके अल्प कर लिया तथा समस्त प्रकार के राग-द्वेष से मुक्त हो गया, वह समाधिमरण करने के योग्य है।
उवासगदसाओ में समाधिमरण लेनेवाले व्यक्ति की योग्यता का वर्णन कथानकों के आधार पर किया गया है। इस कथानक के मुख्य पात्र हैं२९- आनन्द, कामदेव, चुलनीपिता, सुरादेव, चुल्लशलक, कुंडकौलिक, सकडालपुत्र, गोशालक, महाशतक, नन्दिनीपिता, सालिहीपिता आदि ने समाधिमरणपूर्वक देहत्याग किया था। इनमें से कुछ के कथानक यहाँ प्रस्तुत किये जा रहे हैं
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