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________________ १३० समाधिमरण कठोर साधना में लीन हो गया। एक दिन पांसुल ने साधनारत गजकुमार के पूरे शरीर में लोहे की कीलें चुभा दी। गजकुमार ने अपनी मृत्यु को निकट जानकर समाधिमरण लिया।२३ अन्तकृद्दशा में गजसुकुमाल के स. धिमरण का वर्णन आराधनासार से भिन्न है। इसमें गजसुकुमाल के सिर पर सोमिल नामक ब्राह्मण ने गीली मिट्टी से पाल बाँधकर आग डाल दी । इस भयानक पीड़ा को सहन करते हुए गजसुकुमाल ने समाधिमरण किया थारे। इस प्रकार उपर्युक्त ग्रन्थों, विद्वानों के विचारों एवं कथानकों के आधार पर यही कहा जा सकता है कि समाधिमरण ग्रहण करने के लिए मुख्यरूप से दो उपयुक्त अवसर माने जा सकते हैं : (१) शारीरिक दुर्बलता (२) प्राकृतिक एवं प्राणीकृत विपदाजन्य आकस्मिक मृत्यु का कारण उपस्थिति होने पर। शारीरिक दुर्बलता वृद्धावस्था के कारण, रोग या व्याधि के कारण, आत्मशुद्धि के लिए किए गये व्रत, तप, अनशन आदि किन्हीं कारणों से शरीर इतना दुर्बल हो गया हो कि व्यक्ति का जीवन भारस्वरूप बन गया हो अर्थात् व्यक्ति अपने आवश्यक कार्यों का सम्पादन करने में समर्थ न हो । उसके सम्पादन के लिए किसी अन्य व्यक्ति की सहायता आवश्यक हो, दुर्बलता के कारण उसकी इन्द्रियाँ अपने विषयों को ग्रहण नहीं कर पाती हों- इन परिस्थितियों को समाधिमरण करने का उपयुक्त अवसर माना गया है। प्राकृतिक एवं प्राणीकृत विपदाएँ .. अकाल, भुखमरी, अतिवृष्टि, अनावृष्टि आदि प्राकृतिक विपदाएँ हैं। आग में जलना, पानी में डूबना, ऊँचाई से गिरना ये प्राकृतिक एवं प्राणीकृत दोनों विपदाएँ हैं। प्राकृतिक इस रूप में है कि कभी-कभी नदी में बाढ़ आ जाती है, जिसमें डूबने से मृत्यु हो जाती है। व्यक्ति विशेष द्वारा पानी में डूबाकर या आग में जलाकर मारना, हिंसक दुष्टात्माओं के चंगुल में फँसना आदि प्राणीकृत विपदाएं हैं। इन परिस्थितियों में व्यक्ति को अगर स्पष्ट रूप से मृत्यु की सम्भावना प्रतीत हो तो उसके लिए ये परिस्थितियाँ समाधिमरण करने हेतु उपयुक्त अवसर हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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