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समाधिमरण का व्यवहार पक्ष
१२९ अयोध्या नगरी में धर्मसिंह नामक एक राजा था। उसकी पत्नी का नाम चन्द्रशीला था। उसने पत्नी को त्यागकर मुनि दीक्षा धारण की और अपने श्वसर के भय से कोल्लगिरि नगर में हाथी के कलेवर में प्रवेश करके समाधिमरण की साधना की।१७ पाटलिपुत्र नगर में ऋषभसेन नामक श्रेष्ठी ने पत्नी को त्यागकर दीक्षा ली। अपनी पुत्री के स्नेहवश श्वसुर के द्वारा उपसर्ग किए जाने पर ऋषभसेन ने श्वास रोककर समाधिमरण की साधना की।८ श्रावस्ती नगरी के राजा जयसेन ने बौद्ध धर्म त्यागकर जैनधर्म धारण किया था। इससे कुपित होकर अहिमारक नामक बौद्ध ने उसे उस समय मार डाला जब वह आचार्य यतिवृषभ को नमस्कार कर रहा था। तब आचार्य ने अपना अपवाद दूर करने के लिए शस्त्र से अपना घात करते हुए साधना की।१९ पाटलिपुत्र में नन्दराजा का मंत्री शकताल था। उसने महापद्मसूरि से जिन-दीक्षा ग्रहण की। उसके विरोधी वररुचि ने राजा महापद्म को रुष्ट करके शकताल को मारने का प्रयत्न किया तो शकताल मुनि ने पाँच नमस्कारमन्त्र का ध्यान करते हुए छुरी से अपना पेट फाड़ डाला और इस प्रकार समाधिमरण की साधना की।२०
उपर्युक्त समस्त कथानकों में यह स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है कि साधक अथवा व्यक्ति ने आत्ममरण के लिए बाह्य विधियों का आश्रय लिया है। उसे ऐसा क्यों करना पड़ा यह कथानक के पूर्ण अध्ययन से पता चल जाता है। प्रायः इन सभी अवस्थाओं में व्यक्ति ने धर्म से भ्रष्ट हो जाने की अपेक्षा बाह्य विधियों की सहायता से अपना देहत्याग करना अधिक श्रेष्ठ माना है। वस्तुत: व्यक्ति की यह भावना मरण को दूषित नहीं करती है, अपितु इसे पंडितमरण की कोटि में ले आती है, जो कमोवेश समाधिमरण का ही पर्यायवाची है।
इसी तरह आराधनासार में भी कुछ अन्य कथानकों के आधार पर उपसर्गादि के कारण समाधिमरण करनेवाले व्यक्ति के रद.१ग मिलते हैं, जो निम्न हैं. -
शिवभूति ने जैन दीक्षा ग्रहण की। ध्यान तथा कठोर साधना के अभ्यास के निमित्त जंगल (बांसों के जंगल) चला गया। तेज हवा के कारण पेड़ों (बांसों) के आपस में टकराने से अग्नि पैदा हुई। इस अग्नि के कारण समस्त जंगल में आग लग गई। शिवभूति भी चारों तरफ अग्नि से घिर गया। इस संकट से बचने का कोई उपाय न देखकर उसने समाधिमरण किया।२१ श्रीदत्त नामक साधक अपनी कठिन साधना में लीन था। उस समय बहुत ज्यादा ठण्ड पड़ रही थी। किसी ने द्वेषवश उसके ऊपर ठण्डा पानी डाल दिया। अत्यधिक ठण्ड के कारण जब श्रीदत्त को यह विश्वास हो गया कि उसकी मृत्यु निश्चित है तो उसने समाधिमरण करके प्राणत्याग किया ।२२ विवाहित गजकुमार पांसुल नामक श्रेष्ठी की पत्नी पर आसक्त हो गया। बाद में गजकुमार ने जैन दीक्षा ग्रहण की और
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