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समाधिमरण का व्यवहार पक्ष
१२७ आचारांग की शीलांक टीका के अनुसार समाधिमरण करने के उपयुक्त अवसर निम्नलिखित है(१) रूखा-सूखा नीरस आहार लेने से अथवा तपस्या से शरीर अत्यन्त ग्लान
हो गया हो। (२) शरीर रोग से पीड़ित हो गया हो। (३) शरीर आवश्यक क्रिया करने में अत्यन्त अक्षम हो गया हो। (४) शरीर उठने-बैठने, करवट बदलने आदि नित्य क्रियाएँ करने में अक्षम हो
गया हो। इस प्रकार जब शरीर अत्यन्त ग्लान हो जाए तभी भिक्षु को त्रिविध समाधिमरण (भक्तप्रत्याख्यान, इंगिनीमरण या प्रायोपगमनमरण) में से अपनी योग्यता, क्षमता और शक्ति के अनुसार किसी एक का चयन करना चाहिए।
पुरुषार्थसिद्ध्युपाय के अनुसार समाधिमरण व्रत ग्रहण करने का उपयुक्त अवसर जीवन की अन्तिम बेला है। जब व्यक्ति को उसकी मृत्यु निकट भविष्य में निश्चित प्रतीत होने लगे तो व्यक्ति को ऐसे समय समाधिमरण करना चाहिए।
धर्मामृत (सागार) के अनुसार - स्वाभाविक वृद्धावस्था के कारण अथवा दुर्निवार रोग और शत्रु के आघात आदि उपसर्ग द्वारा मरण निश्चित प्रतीत होने पर अथवा शीघ्रमरणसूचक देहविकार या वाणीविकार आदि के द्वारा निकट भविष्य में मरण का निश्चय होने पर व्यक्ति को समाधिमरण करना चाहिए।
आराधनासार में समाधिमरण के योग्य अवसर पर प्रकाश डालते हए लिखा गया है - “जरारूपी व्याधि जब देह पर आक्रमण करे, स्पर्श, रस, गन्ध, वर्ण, शब्द को ग्रहण करनेवाली इन्द्रियाँ अपने विषयों को ग्रहण करने में असमर्थ हो जाये, आयुरूपी जल पूर्णरूपेण छीन जाये, शरीर में हड्डियों की सन्धियों का बन्ध तथा सिराओं और स्नायुओं से हड्डियों के जोड़ शिथिल हो जायें अर्थात् शरीर इतना कृशकाय हो जाये कि वह स्वयं काँपने लगे आदि अवस्थायें ही समाधिमरण के लिए उपयुक्त हैं।" श्रावकाचार संग्रह के अनुसार - शीघ्रमरण सूचक देह विकार या किसी और कारण से शीघ्रमरण की सम्भावना होने पर अथवा अपमृत्यु के कारण एकदम आयु के नाश की सम्भावना होने पर समाधिमरण करना चाहिए। समाधिमरणोत्साहदीपक के अनुसार- साँप के काटे जाने पर या उपसर्गादि के समय मरण में सन्देह उपस्थिति होने पर बुद्धिमान को इस प्रकार अनशन ग्रहण करना चाहिए। वह इस प्रकार कहे कि यदि इस उपसर्गादि में मेरे प्राणों
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