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समाधिमरण पथ पर अडिग रहने का सन्देश कैसे दे पाएगें?
(२८) प्रकाशन - आराधक के सामने अन्तिम आहार का प्रस्तुतीकरण प्रकाशन (पयासणा) है।१९८ एक ही बार में क्षपक तीनों प्रकार के आहार का त्याग नहीं कर पाता है, क्योंकि ऐसा होने पर उसके मन में आहार के प्रति व्याकुलता बनी रहती है। अत: क्षपक के सामने उत्तम से उत्तम भोजन अलग-अलग पात्रों में सजाकर लाया जाता है। जब वह संतुष्ट हो जाता है तो उसके सामने अन्तिम आहार प्रस्तुत किया जाता है।९९
(२९) हानि - क्षपक का आहार के प्रति आसक्ति आहार की अभिलाषा में दोष दिखाने पर भी खत्म नहीं होती है तो आचार्य समाधिमरण करनेवाले क्षपक को सब आहार दिखलाकर क्रम से एक-एक आहार छुड़ाते हुए उसके मन से आहारासक्ति को दूर करते हैं।२००
(३०) प्रत्याख्यान - तीनों प्रकार का आहार-त्याग प्रत्याख्यान कहलाता है। क्रम से आहार का त्याग करने के बाद क्षपक के उदर-मल का शोधन किया जाता है। यह प्रक्रिया हो जाने के बाद क्षपक जीवनपर्यन्त के लिए अशन, खाद्य और स्वाद्य तीनों प्रकार के समस्त आहार का त्याग कर देता है।२०१
(३१) क्षमापना - क्षमा याचना करना क्षमापना है।२०२ क्षपक संघ के समस्त सदस्यों से क्षमायाचना करता है। क्षपक सबके पास क्षमा मांगने स्वयं नहीं जा सकता है। अत: उसकी तरफ से, सबकी ओर से क्षमा याचना का सन्देश लेकर आचार्य जाते हैं। अपने साथ उस क्षपक की पिच्छिका लेकर जाते हैं और संघ के समस्त सदस्यों को उसकी पिच्छिका दिखाकर कहते हैं कि वह आप सब से क्षमा मांगता है।
(३२) क्षमण - सबको क्षमा प्रदान करना क्षमण है। क्षपक सबसे क्षमा मांगने के बाद सभी को क्षमा प्रदान करता है। वह कहता है कि जिस संघ में मैंने इतने दिनों तक अपनी साधना को निर्विघ्न समाप्त किया है उसका मुझपर ऋण है। यह संघ कर्मों से छुड़ाता है, क्योंकि संघ गुणों का समूह है। संघ के सदस्यों द्वारा किए गये दोषों को मैं क्रोधादि दोषों से रहित होकर अपने मन से निकाल देता हूँ तथा सर्वसंघ को क्षमा प्रदान करता हूँ।२०३
(३३) अणुशिष्टि - निर्यापकाचार्य द्वारा जो शिक्षा दी जाती है, वह अणुशिष्टि है।२०४ निर्यापकाचार्य संस्तर पर आरूढ़ क्षपक को शिक्षा देते हुए कहते हैं कि अब तुम्हारा मरण समय निकट आ गया है, तुम शुद्धिपूर्वक समाधि करो। तत्त्वश्रद्धान से मिथ्यादर्शन
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