________________
समाधिमरण ठीक कहता है, किन्तु सूत्र को विपरीत पढ़ता है। यह दोष व्यंजनशुद्धि से दूर होता है। दूसरा व्यक्ति सूत्र तो ठीक पढ़ता है लेकिन सूत्र का अर्थ अन्यथा कहता है इस दोषमुक्ति को अर्थशुद्धि कहा गया है। इस तरह से इन दोनों ही दोषों से मुक्त होकर सूत्र का यथारूपेण पाठ और अर्थ करना ही तदुभय शुद्धि है।
(५) समाधि - इसका अर्थ होता है- मन को एकाग्र करना।१५० चित्त को स्थिर रखना चाहिए, क्योंकि वचन और शरीर से शास्त्रानुसार आचरण करनेवाले साधु का मन . यदि निश्चल नहीं होता है तो उसका श्रामण्य नष्ट हो जाता है।१५१
(६) अनियत विहार- इसका अर्थ है-अनियत क्षेत्र में विहार करना।१५२ भक्तप्रत्याख्यान करनेवाले व्यक्ति को एक स्थान में नहीं बसना चाहिए। उसे अनियत स्थान में विहार करते रहना चाहिए, क्योंकि इससे दर्शनविशुद्धि, स्थितिकरण, भावना, अतिशय अर्थों में निपुणता (अर्थकुशलता) और क्षेत्रों के अन्वेषण में सहायता मिलती है।१५३
(७) परिणाम - व्यक्ति द्वारा अपने कर्तव्य की आलोचना करना ही परिणाम कहलाता है।१५४ व्यक्ति अपने आत्महित के बारे में चिन्तन करता है। वह सोचता है कि मैं दर्शन-ज्ञान-चारित्र में चिरकाल से रमा रहा । दूसरों को आगम के अनुसार निर्दोष ग्रन्थ
और उसके अर्थ का दान किया है। इस प्रकार पर के उपकार में समय बीता। अब आज से अपना हित भी करना चाहिए, यह उचित भी है।१५५
(८) उपाधि-त्याग - उपाधि अर्थात् परिग्रह का त्याग करना।१५६ मुक्ति को खोजनेवाला विशुद्ध लेश्या से युक्त व्यक्ति संयम के साधन परिग्रह को छोड़कर शेष अन्य परिग्रह का मन-वचन-काय से त्याग कर देता है।१५७ कमण्डल, पिच्छी आदि उपकरण ही संयम में सहायक माने जाते हैं। अत: साधक मात्र इन्हें अपने पास रखता है और शेष का त्याग कर देता है। .
(९) श्रेणी - इसका अर्थ होता है- श्रेणी या सोपान।१५८ इसका एक अर्थ आश्रय भी माना जाता है और आश्रय रूप में भाव और द्रव्य को ग्रहण किया जाता है। भाव परिणाम का सूचक है, जबकि द्रव्य श्रद्धान के अर्थ में व्यवहृत हआ है। अत: भाव परिणाम भावश्रिति है, जबकि द्रव्य का आश्रय लेने के कारण दूसरा द्रव्यश्रिति है। ज्ञान, श्रद्धान, समभाव आदि गुणों का ऊपर-ऊपर उन्नत होना गुण प्रतिपत्ति है और यही भाव श्रिति कहलाती है। ऊपर चढ़नेवाला नसेनी, सीढ़ी आदि जिस द्रव्य का आश्रय लेता है उसे द्रव्यश्रिति कहते हैं।१५९ भक्तप्रत्याख्यान करनेवाले व्यक्ति को भावश्रिति पर आरोहण करके विहार करने का प्रयत्न करना चाहिए।
.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org