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समाधिमरण एवं मरण का स्वरूप काल कम से कम अन्तर्मुहूर्त है, ज्यादा से ज्यादा बाहर वर्ष है और मध्यम अन्तर्मुहूर्त से ऊपर तथा बारह वर्ष से कम का है।५१७ भगवती आराधना की विजयोदया टीका में कहा गया है कि दीक्षाग्रहण से लेकर निर्यापक गुरु का आश्रय लेने के अन्तिम दिन तक ज्ञान, दर्शन और चारित्र में लगे अतिचारों की आलोचना करके गुरु के द्वारा दिए गए प्रायश्चित को स्वीकार करके तीन प्रकार के आहार के त्याग आदि के साथ क्रम से रत्नत्रय का आराधना करना भक्तप्रत्याख्यान है।११८
उत्तराध्ययन १९, भत्तपइण्णा २" और भगवती आराधना २१ में भक्तप्रत्याख्यानमाण के दो भेद किए गये हैं- सविचार एवं अविचार। जो उत्साह अर्थात् बलयुक्त हैं, जिसकी मृत्यु तत्काल होनेवाली नहीं है अर्थात् जिसकी आयु अभी बहुत अल्प नहीं हुई है, ऐसे व्यक्ति के भक्तप्रत्याख्यान को सविचार भक्तप्रत्याख्यान कहा जाता है। ५२२ सविचार का अर्थ है बिना किसी प्रकार की विवशता के स्वेच्छापूर्वक देहत्याग का निर्णय लेना तथा विविध कारणों के फलस्वरूप मृत्यु की आकस्मिक सम्भावना होने या सहसा मरणकाल उपस्थित होने पर एवं ऐसी ही अन्य परिस्थितियाँ उत्पन्न होने पर व्यक्ति द्वारा जो भक्तप्रत्याख्यान किया जाता है वह अविचार भक्तप्रत्याख्यान कहलाता है।१२३ जब विचारपूर्वक भक्तप्रत्याख्यान करने का समय ही नहीं रहता, जब सहसा ही मरण उपस्थित हो जाए अर्थात् आकस्मिक रूप से मृत्यु जीवन के द्वार पर दस्तक देने लगे तो अविचार भक्तप्रत्याख्यान ग्रहण करना चाहिए।
सविचार भक्तप्रत्याख्यान
भगवती आराधना में सविचार भक्तप्रत्याख्यान का विवेचन चालीस अधिकार सूत्र पदों की सहायता से किया गया है। ये निम्नलिखित हैं१२४
(१) अरिहे - इसका अर्थ योग्य होता है।१२५ जिन्हें दुष्प्रसाध्य व्याधि है अथवा श्रामण्य को हानि पहुँचाने वाली वृद्धावस्था है अथवा देवकृत मनुष्यकृत और तिर्यन्चकृत उपसर्ग है, वे भक्तप्रत्याख्यान करने के योग्य हैं।२२६ जो देखने और सुनने में असमर्थ हैं तथा निर्बलता के कारण चल नही पाते हैं वे भी भक्तप्रत्याख्यानमरण लेने योग्य है। जिनका चरित्र चिरकाल तक कलुषित होनेवाला नहीं है, निकट भविष्य में किसी तरह का उपसर्ग भी नहीं आनेवाला है उनको समाधिमरण कराने में सहायक निर्यापक के उपलब्ध होने पर भी भक्तप्रत्याख्यान नहीं करना चाहिए। अगर कोई ऐसे समय में भक्तप्रत्याख्यान करता है तो वह अपने धर्म से विरत हो जाता है। १२८
(२) लिंग - इसका अर्थ चिह्न होता है। कर्ता किस लिंग का है यह जानना।'
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