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________________ समाधिमरण एवं मरण का स्वरूप ८७ अलौकिक शक्ति से युक्त नहीं होते और न ही अपूर्णता की दशा में लिया गया आमरण व्रत (समाधिमरण) नैतिक हो सकता है। अपने तर्क के दूसरे भाग में वे कहते हैं कि जैनपरम्परा में स्वेच्छा मृत्युवरण (समाधिमरण) करने में यथार्थता की अपेक्षा आडम्बर अधिक होता है, इसीलिए वह अनैतिक है। डॉ० सागरमल जैन डॉ० ईश्वरचन्द्र के विचार से अपनी असहमति व्यक्त करते हुए लिखते हैं१०६ “जीवन्मुक्त एवं अलौकिक शक्तिसम्पन्न व्यक्ति ही स्वेच्छामरण का अधिकारी है, हम सहमत नहीं है। वस्तुत: स्वेच्छामरण उस व्यक्ति के लिए आवश्यक नहीं है जो जीवन्मुक्त है और जिसकी देहासक्ति समाप्त हो गयी है, वरन् उस व्यक्ति के लिए है जिसमें देहासक्ति शेष है, क्योंकि समाधिमरण तो इसी देहासक्ति को समाप्त करने के लिए है। समाधिमरण एक साधना है, इसलिए वह जीवन्मुक्त (सिद्ध) के लिए आवश्यक नहीं है। जीवन्मुक्त को तो समाधिमरण सहज ही प्राप्त होता है। जहाँ तक इस आक्षेप की बात है कि समाधिमरण में यथार्थता की अपेक्षा आडम्बर ही अधिक परिलक्षित होता है, उसमें आंशिक सत्यता अवश्य हो सकती है, लेकिन इसका सम्बन्ध समाधिमरण के सिद्धान्त से नहीं, वरन् उसके वर्तमान में प्रचलित विकृत रूप से है, लेकिन इस आधार पर उसके सैद्धान्तिक मूल्य में कोई कमी नहीं आती है। यदि व्यावहारिक जीवन में अनेक व्यक्ति असत्य बोलते हैं तो क्या उससे सत्य के मूल्य पर कोई आँच आती है? वस्तुत: स्वेच्छामरण (समाधिमरण) के मूल्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता। इस प्रकार हम देखते हैं कि विभिन्न विद्वानों ने अपने-अपने ढंग से समाधिमरण और आत्महत्या के अंतर को स्पष्ट करने का प्रयत्न किया है। उनके चिन्तन के आधार पर हम कह सकते हैं कि समाधिमरण और आत्महत्या में बहुत बड़ा अन्तर हैं। इन अन्तरों को हम इस रूप में भी समझ सकते हैं • समाधिमरण और आत्महत्या में अवस्थागत अन्तर । • समाधिमरण और आत्महत्या के द्वारा की जानेवाली देहत्याग की विधियों का अन्तर । • समाधिमरण और आत्महत्या के समय साधक के मन में उठनेवाले भावों का अन्तर। आगे हम इन तीनों ही बिन्दुओं को स्पष्ट करने का प्रयत्न करेगें। समाधिमरण करनेवाला व्यक्ति सुख-दुःख दोनों ही अवस्थाओं में समत्व का भाव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002112
Book TitleSamadhimaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajjan Kumar
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year2001
Total Pages238
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Philosophy, Religion, & Epistemology
File Size10 MB
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