________________
नैतिकता की मौलिक समस्याएँ और आचारांग : ५५ में यथाप्रसंग दोनों की आवश्यकता है। फिर भी, इसका यह अर्थ नहीं है कि साधक जीवन में अपवाद-मार्ग का अवलम्बन लेना अनिवार्य है। साधना का एक मात्र लक्ष्य यही होना चाहिए कि साधक के चित्त की समाधि बनी रहे, तथा ज्ञानादि गुणों की अभिवृद्धि होतो रहे । उत्सर्गमार्ग से प्रगति करते हुए यदि चित्त-समाधि बनी रहती है तो अपवाद मार्ग अपनाने की कोई आवश्यकता नहीं है । अपवाद का सहारा तो तब लिया जाना चाहिए जब चैत्सिक समाधि भंग होने की सम्भावना हो अथवा कोई विशिष्ट कारण उपस्थित हो।
सत्य महाव्रत के सम्बन्ध में आचाराङ्ग में कहा गया है कि मुनि मन, वचन और काया से स्वयं मिथ्या भाषण नहीं करता, दूसरों से नहीं करवाता और मिथ्याभाषण करने वालों का अनुमोदन भी नहीं करता ।५० सदैव सत्य भाषण करना मुनि के लिए उत्सर्ग मार्ग है। आचाराङ्ग में इसके अपवाद की चर्चा भी हुई है। यदि भिक्षु विहार कर रहा है और मार्ग में उसे कोई पथिक मिल जाए और वह उससे पूछे कि हे आयुष्मन् श्रमण ! आपने इधर से मनुष्य, पशु-पक्षी, गाय, भैंस, बैल आदि किसी को भी आते-जाते देखा है ? यदि देखा हो तो बताइए कि वे किस ओर गए हैं, ऐसी विशेष परिस्थिति में मुनि कुछ न कहे अर्थात् मौन रहे। जानता हुआ भी यह न कहे कि मैं जानता हूँ अथवा जानता हुआ भी यह कह दे कि मैं नहीं जानता ।५१ यह सत्यव्रत का अपवाद है। ऐसा कथन तो असत्य भाषण ही है लेकिन परिस्थिति विशेष में इसका दोष नहीं लगता । आचाराङ्ग में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि मुनि को असत्य और मिश्र वचन का प्रयोग नहीं करना चाहिए । सदा सत्य और व्यवहार भाषा हो बोलनी चाहिए। परन्तु साथ ही यह भी कहा है कि सत्य और व्यवहार भाषा में भी जो सावध, अप्रिय, कर्कश-कटु या छेदन-भेदनकारी हो तथा जिस भाषा से जीवों की हिंसा होती हो उसे ऐसी सत्य भाषा भी कदापि नहीं बोलनी चाहिए ।५२ दशवैकालिक 3 में भी इसी बात का समर्थन किया गया है।
निष्कर्ष यह है कि धर्म संकट की स्थिति में यदि कदाचित् असत्य बोलना पड़े तो आपवादिक विधान भी उत्सर्ग की भाँति कर्तव्य रूप हो जाता है । आचारांग की भाँति सूत्रकृतांग५४ और निशोथ चूर्णि५५ में भी आपवादिक चर्चा है। __ अस्तेय व्रत के उत्सर्ग मार्ग के विषय में आचारांग में कहा है कि भिक्षु स्वामी की आज्ञा के बिना कोई भी वस्तु नहीं ले सकता। बिना
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org