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५४ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन करना चाहिए । “ परन्तु आचाराङ्ग में एकाध स्थान पर अपवाद मार्ग का उल्लेख भी हुआ है । अपवाद मार्ग परिस्थिति और मनःस्थिति पर आधारित है कि कौन व्यक्ति किस विशेष परिस्थिति में, किस भावना से, कौन-सा कार्य कर रहा है। अतः एकान्त रूप से उसे पाप-बन्ध का कारण नहीं कहा जा सकता । आचाराङ्ग में कहा गया है कि साधु को यदि यह पता चले कि गृहस्थ के घर अतिथि के लिए भोजन तैयार किया गया है तो उसे वहां शीघ्रता से पहुँचकर आहार की याचना नहीं करनी चाहिए । परन्तु विशेष परिस्थिति में यदि किसी रोगी साधु के लिए आवश्यक हो तो आहार की याचना को जा सकती है।३९ अतिथि के भोजन कर लेने के पूर्व नहीं जाना—यह उत्सर्ग मार्ग है, किन्तु रोगी के लिए आवश्यकता होने पर अतिथि के भोजन करने के पहले ही भोजन ले आना अपवाद मार्ग है । आचाराङ्गवृत्तिकार के मतानुसार औत्सर्गिक स्थिति में आधार्मिक आहार अग्राह्य है, किन्तु आपवादिक कारणों के उपस्थित होन पर गीतार्थ मुनि अल्प बहुत्व का विचार कर सदोष आहार भी ग्रहण कर सकता है ।४० सूत्रकृतांग और निशीथ४२ में भी यही बात कही गई है । भगवती सूत्र में भी महावीर ने औद्देशिक एवं अनेषणोय आहार के सम्बन्ध में गौतम द्वारा पूछे गए प्रश्न का समुचित समाधान किया है।४३ निर्दोष आहार ग्रहण करने का यह उत्सर्ग विधान संयम रक्षार्थ हैं तो सदोष आहार ग्रहण करने का यह अपवाद मार्ग भी उत्सर्ग की भांति संयम के पालन के लिए ही विहित है। दोनों का उद्देश्य एक ही है-संयम की सुरक्षा।
आचाराङ्ग में अहिंसा व्रत के पूर्णतः पालन करने की दृष्टि से ही किसी भी समूह-भोज ( संखडि ) में जाकर आहार लाने की आज्ञा नहीं है।४४ परन्तु उत्सर्ग या निषेध के साथ ही उसमें अपवाद का भो विधान है। सूत्रकार का कथन है कि समूह-भोज (संखडि ) में जाने से यदि संयम-विराधना की संभावना न हो तो प्रज्ञावान् मुनि पूर्व या पश्चात् समह-भोज में जाकर आहार ग्रहण कर सकता है।४५ इस सम्बन्ध में आचाराङ्गवृत्तिकार का अभिमत है कि आचाराङ्ग में समूह-भोज में जाकर आहार लेने का जो अपवाद मार्ग स्वोकार किया गया है वह परिस्थिति विशेष की दृष्टि से ही है ।४६ इसी तरह उत्तराध्ययन, बहल्कल्प और निशीथ सूत्र में भी समूह-भोज ( संखडि) में जाने का तथा आहार ग्रहण करने का निषेध है।
ये सभी अपवाद मुख्यतः अहिंसा व्रत से सम्बन्धित हैं। साधना-मार्ग
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