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५२ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन और आचरणात्मक नैतिकता सापेक्ष है। दूसरे शब्दों में व्यावहारिक नैतिकता सापेक्ष है और नैश्चयिक नैतिकता निरपेक्ष है।
निष्कर्ष यह है कि निरपेक्षवादी विचारधारा मात्र आदर्श नैतिकता पर जोर देती है और सापेक्षवादी विचारधारा यथार्थ नैतिकता पर। इसके विपरीत आचाराङ्ग एकान्तिक दृष्टिकोण की अपेक्षा, अभीष्ट लक्ष्य पर पहुँचने के लिए आदर्श और यथार्थ दोनों पहलुओं को अनेकांतिक दृष्टि से या समन्वय दृष्टि से प्रस्तुत करता है । निरपेक्षता आदर्श है और सापेक्षता व्यवहार या यथार्थ । आचाराङ्ग में उत्सर्ग और अपवाद मार्ग :
सापेक्ष और निरपेक्ष नैतिकता के सन्दर्भ में उत्सर्ग और अपवाद मार्ग की चर्चा कर लेना भी उचित होगा। __ जैनागमों में साधना के दो अंग निरूपित हैं-उत्सर्ग और अपवाद । एक के बिना दूसरा अधरा या अपूर्ण है। नैतिक जीवन के लिए यथावसर इन दोनों की साधना आवश्यक है । दोनों के मिलने पर ही अन्तिम ध्येय की सिद्धि सम्भव है। ___ आचाराङ्ग में सामान्य स्थिति में विधि-निषेध रूप आचरण सम्बन्धी जो सामान्य नियम बताए गए हैं उनका उसी रूप में पालन करना उत्सर्ग मार्ग है और किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों में उन्हीं सामान्य नियमों या विधि-निषेधों में कुछ समय के लिए शिथिलता कर देना अपवाद मार्ग है। संक्षेप में सामान्य विधि-निषेध को उत्सर्ग-मार्ग और विशेष विधि-निषेध को अपवाद मार्ग कह सकते हैं। ऐसे ही विचार स्थानांगसूत्र२२, उपदेशपद3, स्याद्वादमंजरी२४ आदि ग्रन्थों में भी व्यक्त हैं।
उत्सर्ग-अपवाद के सम्बन्ध में यह उल्लेखनीय है कि ये दोनों मार्ग भी अपने आप में एकान्तिक नहीं हैं। यथा परिस्थिति उत्सर्ग अपवाद हो सकता है और अपवाद उत्सर्ग । निशीथभाष्य एवं चूर्णि के अनुसार जो कार्य समर्थ साधक के लिए उत्सर्ग स्थिति में निषिद्ध है वही कार्य असमर्थ साधक के लिए अपवाद स्थिति में कर्तव्य रूप हो जाता है२५, और इसमें किसी प्रकार का दोष नहीं है। यही बात बृहत्कल्पभाष्य और अष्टकप्रकरण२७ में भी कही गई है। महावतों के अपवाद : आचारान के संदर्भ में : __ आचारांग में स्थूल एवं सूक्ष्म सभी प्रकार की जीव-हिंसा का निषेध
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