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________________ ४० : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन यह मोक्ष मार्ग है । आचाराङ्ग का यह त्रिविध मोक्षमार्ग-बौद्धधर्म के शील, समाधि और प्रज्ञा के रूप में स्वीकृत त्रिविध निर्वाण मार्ग से निकटता रखता है। वैसे आचाराङ्ग में एकत्र रूप से तो नहीं किन्तु पृथक-पृथक रूप से सम्यक दर्शन, ज्ञान और चारित्र का भी उल्लेख उपलब्ध है। ____ आचाराङ्ग में कहीं-कहीं इन तीनों की साधना के साथ तप को भी मोक्ष-साधना के रूप में चौथा साधन स्वीकार किया गया है, जो कि चारित्र का ही एक भेद है। इस प्रकार आचाराङ्ग के अनुसार सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक् चारित्र की समन्वित साधना से आत्मा कर्म-बन्धन से मुक्त हो जाती है । बन्धन से मुक्ति को प्रक्रिया : बन्धन से मुक्ति के लिए चार तत्त्वों का परिज्ञान होना आवश्यक है-(१) बन्धन, (२) बन्धन का कारण, (३) बन्धन से मुक्ति तथा, (४) मुक्ति के उपाय | आस्रव बन्धन का कारण है तो संवर नवीन कर्मों के आगमन को रोकने का और तप पुराने कर्मों की निर्जरा का उपाय है । साधक जब तक बन्धन और मोक्ष के यथार्थ स्वरूप को तथा मोक्ष के मार्ग को नहीं जान लेता तब तक वह कर्मों का क्षय अर्थात् मुक्ति नहीं प्राप्त कर सकता । इस संदर्भ में आचाराङ्ग का कथन है'जहा य बद्धं इह माणवेहिं, जहाय तेसितु विमोक्ख आहिए अहा तहा बन्ध विमोक्ख जे विउ, से हु मुणो अन्तकड़े त्ति वुच्चइ' । (आचाराङ्ग२-१६) जिस प्रकार इस संसार में जीवों ने कर्म का बन्धन किया है, उसी प्रकार वे उन बद्ध कर्मों से मुक्त भी हो सकते हैं। जो मुनि बन्ध और मोक्ष के यथार्थ स्वरूप को जानता है वह निश्चय ही कर्मों का क्षय (अन्त) करने वाला कहा जाता है। संवर: ___ कर्मो से मुक्त होने के लिए संवर को साधना आवश्यक है। संवर के अर्थ को स्पष्ट करते हुए टीकाकार कहते हैं-'संवृणोति कर्म अनेनेति संवरः' अर्थात् जिसके द्वारा आने वाले नए कर्म रुक जायें उसे संवर कहते हैं। आचाराङ्ग का कथन है कि विषय-कषायों ( स्रोतों) का निरोध करने वाला साधक कर्म-रहित होकर ज्ञाता-द्रष्टा बन जाता है ।२१ कर्म अपना फल देते हैं यह देखकर ज्ञानी पुरुष उस कर्मास्रव Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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