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________________ ३२ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन अर्थात् आत्मा सदा अपने लिए नए-नए वस्त्र बुनती है तथा आत्मा में एक ऐसी नैसर्गिक शक्ति है, जो धुव रहेगो और अनेक बार जन्म लेगी।७२ इसी तरह अरस्तू, सुकरात, काण्ट, जेम्ससेथ मार्टिन्यू आदि ने भी आत्मा और मरणोत्तर जीवन को अपने-अपने ढंग से युक्तियों द्वारा स्पष्ट करने का प्रयास किया है। हाडिंग भी 'मूल्यों की नित्यता' का सिद्धान्त मानता है और इसी सिद्धान्त से आत्मा की अमरता को सिद्ध करता है।७३ आत्म-स्वातन्त्र्य एवं पुरुषार्थवाद : ___ नीतिशास्त्र की मान्यता है कि नैतिकता के लिए संकल्प-स्वातन्त्र्य की अवधारणा को स्वीकार करना आवश्यक है। अन्यथा 'तुम्हें यह करना चाहिए' इस नैतिक आदेश का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। काण्ट का कथन है कि तुम्हें करना चाहिए क्योंकि तुम कर सकते हो। इसी तरह आचारांग में भी साधक को अनेक नैतिक आदेश दिए गए हैं जैसे-'तुम्हें प्रमाद का त्याग करना चाहिए', 'विषय-कषायों से निवृत्त होना चाहिए', इन्द्रियों का निग्रह करना चाहिए, 'मन, वचन और काया पर संयम रखना चाहिए', साधना में पुरुषार्थ करना चाहिए आदि । 'चाहिए' में कर सकने' की स्वतंत्रता निहित है। संकल्प की स्वतंत्रता के अभाव में नैतिक आदेशों ( चाहिए ) का कोई अर्थ नहीं होता और न व्यक्ति को धर्म-अधर्म, पुण्य-पाप, उचित-अनुचित आदि के लिए उत्तरदायी ही ठहराया जा सकता है। उन्हीं कर्मों या आचरणों को हम अच्छा या बुरा, उचित या अनुचित कहते हैं, जिन्हें व्यक्ति स्वतंत्र रूप से करता है। संकल्प की स्वतंत्रता के कारण ही वह अपने कर्मों के लिए उत्तरदायी माना जाता है। संकल्प-शक्ति के आधार पर ही वह बुरी आदतों को त्यागने में सफल हो सकता है । __ आचारांग में 'उठिठए णो पमायए' 'अप्पमत्तो परिव्वए', 'अणण्णं चरे' 'अल्लीणगुत्तोपरिव्वए' आदि जितने भी आदेशात्मक वाक्यों का विधान है, वे सब मनुष्य में निहित संकल्प-शक्ति को दर्शाते हैं। यदि व्यक्ति संकल्प करने एवं तदनुरूप आचरण करने में स्वतंत्र नहीं है तो उसके लिए उपयुक्त नैतिक आदेश एवं नैतिक आदर्श दोनों ही अर्थ-शून्य हो जाते हैं । जब किसी व्यक्ति से यह कहा जाता है कि तुम्हें पापकर्म नहीं करना चाहिए, किसी के प्राणों का हनन नहीं करना चाहिए, तो इसका आशय यही होता है कि वह इन कार्यों को करने और न करने में स्वतंत्र है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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