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नैतिकता के तत्त्वमीमांसीय आधार : ३१
सत्' ६७ अर्थात् जो पर्याय रूप से उत्पन्न हो एवं नष्ट हो किन्तु द्रव्य रूप से नित्य व शाश्वत रहे, वह 'सत्' होता है । जगत् के प्रत्येक पदार्थ में नित्यता और अनित्यता दोनों धर्म एक साथ स्थित हैं । हम अतीतकाल में थे, वर्तमान काल में हैं और भविष्य में भी रहेंगे । त्रिकाल में मूल द्रव्य रूप से आत्मा नित्य और अमर रहती है । किन्तु पर्याय रूप से शैशवा, तरुण एवं वृद्ध अवस्थाएँ बदलती रहती हैं और एक शरीर के बाद दूसरे शरीर में संक्रमण करती रहती हैं । आचारांग में स्पष्ट उल्लेख है कि आत्मा की नित्यता के साथ पुनर्जन्म और पुनर्जन्म के साथ आत्मा के नियत्व का प्रश्न जुड़ा हुआ है। क्योंकि कुछ व्यक्ति यह जान लेते हैं कि पूर्वादि दिशा से आये हैं अथवा अन्य किसी दिशा - विदिशा से । कुछ प्राणियों को यह ज्ञात हो जाता है कि यह उनकी आत्मा औपपातिक है अर्थात् पुनर्जन्म लेने वाली है, जो इन दिशा - विदिशाओं में कर्मानुसार संचरण करती है । वह यह भी जान लेता है कि जो इन दिशा-विदिशाओं में भ्रमण करती हुई आई है वही मैं आत्मा हूँ अर्थात् इन दिशा - विदिशाओं में भ्रमणशील जो आत्मा है, वह 'मैं' ही हूँ ।"
वास्तव में पुनर्जन्म सिद्धान्त को मानने वाला ही आत्मवादी है । जन्म-मरण आत्मा का परिवर्तनशील अर्थात् पर्याय वाला पक्ष है और जन्म-मरण की श्रृंखला के बीच उसकी नित्यता का बना रहना आत्मा का नित्यत्व पक्ष है । पर्याय (शरीर ) बदलते रहने पर भी आत्मा नहीं बदलती है । आचारांगकार ने द्रव्य की अपेक्षा से आत्मा की नित्यता एवं पर्याय की अपेक्षा से पुनर्जन्म दोनों को प्रमाणित कर दिया है ।
निष्कर्ष यह है कि वर्तमान जीवन से पूर्व और वर्तमान जीवन की समाप्ति के पश्चात् भी आत्मा के अस्तित्व को स्वीकृति ही आत्मवाद अर्थात् आत्मा की अमरता का सिद्धान्त है । इसके बिना कर्म - सिद्धान्त और पुनर्जन्म को सम्यक् रूप से व्याख्या करना सम्भव नहीं क्योंकि पुनर्जन्म सिद्धान्त का मूल यही है कि जो जैसे कर्म करता है वैसी ही योनि या जन्म प्राप्त करता है । गीता" भी आत्मा की अमरता के साथ पुनर्जन्म की स्वीकार करती है । समाधितंत्र में यही बात कही गई है । अथर्ववेद में भी कहा है कि यह आत्मा सनातन है । न केवल भारतीय विचारक अपितु पाश्चात्य दार्शनिक प्लेटो भी कहता है कि "The soul always weaves her garment a a natural strength which will hold out and be
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new.
The soul has
born many
times."
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