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________________ २६ : आचाराङ्ग का नोतिशास्त्रीय अध्ययन संकल्पात्मक अवस्था में व्यक्ति को समताधर्म की उपलब्धि होना असम्भव है। आचारांग को भाँति भगवती, दशवकालिक, समयसार आदि ग्रन्थों में भी आत्मा के ज्ञान लक्षण पर जोर दिया गया है। आचार्य अमतचन्द्र भी कहते हैं कि 'आत्मा ज्ञानं स्वयं ज्ञानं ज्ञानादन्यत् करोति किम्' ।११ आत्मा साक्षात् ज्ञान है और ज्ञान हो साक्षात् आत्मा है। आत्मा ज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं करता है। उपनिषद् में भो कहा गया है कि 'आत्मनि विज्ञाते सर्व इदं विज्ञातं भवति' १२ आत्मा को जान लेने पर सब कुछ ज्ञात हो जाता है । आत्मा का कर्तृत्व-भोक्तृत्व : __ आचारांग में जहाँ चेतना के स्वभाव या ज्ञान लक्षण का विवेचन उपलब्ध है वहीं उसमें चेतना के व्यावहारिक लक्षणों पर भी प्रकाश डाला गया है। उसमें अनुभूति, संकल्प आदि मनोवैज्ञानिक लक्षणों का भी विवेचन है । आचारांग में कहा है कि 'व्यक्ति में जो अहंकार हैयथा-'मैंने किया,' 'मैं करता हूँ,' 'मैं करूंगा' १3 यही आत्मा (चेतना) का कर्तृत्वभाव है। इस जीव ने बहुत पापकर्म किए हैं । १४ अतः उसे अपने कृतकर्मों का संवेदन करना पड़ता है।१५ जो व्यक्ति अपरिज्ञात कर्मा है, अर्थात् जो कतृत्व भाव का त्याग नहीं करता, वह दिशाओंअनुदिशाओं में संक्रमण करता है और दुःखों को सहन करता है। अनेक प्रकार की योनियों को धारण करता हुआ नाना प्रकार के दुःखों का संवेदन करता है ।१६ ___उपयुक्त सूत्रों की व्याख्या से यह स्पष्ट होता है कि आत्मा शुभाशुभ कर्मों का कर्ता और उनके शुभाशुभ फल का भोक्ता भी है। किन्तु ये लक्षण वस्तुतः बद्धात्मा में ही घटित होते हैं, मुक्तात्मा में नहीं । तत्त्वतः आत्मा न तो कर्म का कर्ता है और न कर्म फल का भोक्ता ही, वह तो एक मात्र ज्ञायक स्वभाव है। कर्तृत्व-भोक्तृत्व आत्मा का निज स्वभाव नहीं है। ये उसकी वैभाविक पर्यायें हैं, क्योंकि ये शरीराश्रित हैं। ये वैभाविक क्रियाएँ पर के निमित्त से ही उसमें घटित होती हैं। आचारांग को भाँति सूत्रकृतांग,१° उत्तराध्ययन, १८ समयसार,१९ नियमसार,२० पंचास्तिकाय,२१ बृहद्रव्यसंग्रह,२२ प्रमाणनयतत्त्वालोक२3 आदि ग्रन्थों में भी आत्मा को कर्म का कर्ता-भोक्ता आदि कहा गया है । आचारांग के अनुसार आत्मा की दो अवस्थाएँ मानी जा सकती हैं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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