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________________ आचाराङ्गसूत्र स्वरूप एवं विषयवस्तु : १७ चाहिए। इस अध्ययन में भाषा सम्बन्धी अनेक विधि-निषेधों का निरूपण है। चौदहवां अध्ययन ( वस्त्रैषणा) : ____ इस अध्ययन में श्रमणों के लिए वस्त्र सम्बन्धी विधान है। यहाँ श्रमण को कैसे और कितने वस्त्र रखने चाहिए, वस्त्र की याचना कैसे करनी चाहिए ? आदि बातों का निरूपण है। पन्द्रहवां अध्ययन ( पात्रैषणा) : प्रस्तुत अध्ययन में यह स्पष्ट किया गया है कि संयम साधना में प्रवृत्त श्रमण को आहार ग्रहण करने के लिए कैसा पात्र रखना चाहिए। पात्र की याचना विधि का भी उल्लेख है। इस अध्ययन की सम्पूर्ण सामग्री दो उद्देशकों में विभक्त है। सोलहवां अध्ययन–अवग्रहैषणा ( आज्ञा-याचना ) : प्रस्तुत अध्ययन में आवास स्थान के लिए किस प्रकार अनुमति प्राप्त करनी चाहिए, किस प्रकार ठहरना चाहिए, गृहस्वामी के प्रति कैसा व्यवहार करना चाहिए आदि का विवेचन है,। साथ ही इसमें पाँच प्रकार के अवग्रह का नाम-निर्देश एवं सात अभिग्रहपूर्वक निर्दोष मकान की याचना का भी वर्णन है। सत्रहवां अध्ययन ( स्थान ) : यह द्वितीय चूला का प्रथम अध्ययन है। इसमें कायोत्सर्ग विधि का निर्देश है। इस अध्ययन में यह बताया गया है कि मुनि को किन स्थानों पर ध्यान, कायोत्सर्ग आदि धार्मिक अनुष्ठान करना चाहिए। अठारहवां अध्ययन-निषोधिका ( स्वाध्याय ): __ इसमें स्वाध्याय भूमि के चयन एवं स्वाध्याय के सम्बन्ध में सजगता का उल्लेख है। उन्नीसवां अध्ययन-उच्चार-प्रस्रवण ( मलमूत्र-विसर्जन ) : उच्चार प्रस्रवण का अर्थ है मल-मूत्र का विसर्जन । इस अध्ययन में यह बताया गया है कि श्रमण को मल-मूत्र का विसर्जन कहाँ करना चाहिए और कहाँ नहीं करना चाहिए। साथ ही श्रमण को यह निर्देश दिया गया है कि उसे मलमूत्र त्याग के लिए सर्वथा निर्जीव, निरवद्य एवं एकांत भूमि का चयन करना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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