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१६ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन
एक-एक अध्ययन हैं । इस प्रकार द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सोलह अध्ययन हैं, जिनकी क्रमसंख्या दस से छब्बीस तक है ।
प्रथम चूला सात अध्ययनों में विभक्त है । इनमें इर्येषणा, भाषैषणा, वस्त्रेषणा, पात्रेषणा, अवग्रह - प्रतिमा आदि से सम्बन्धित विवेचन हैं । द्वितीय चूला के सातों अध्ययन उद्देशकों में विभक्त नहीं हैं। सबका विषय विवेचन एक ही प्रवाह में हुआ है । इनमें कायोत्सर्ग, स्थान निषीधिका ( स्वाध्याय) उच्चार - प्रस्रवण ( मलमूत्र विसर्जन) पारस्परिक क्रिया आदि अनुष्ठानों के सम्पन्न करने के ढंग को भी अहिंसा ( विवेक ) के सिद्धान्त पर अधिष्ठित किया गया है। तृतीय चूला में महावीर का जीवन, पाँच महाव्रत एवं उनकी पच्चीस भावनाओं का महत्त्व दर्शाया गया है और चतुर्थं चूला मुक्ति की साधना से सम्बन्धित है ।
अब हम द्वितीय श्रुतस्कन्ध के प्रत्येक अध्ययन की विषय वस्तु का संक्षिप्त विवेचन प्रस्तुत करेंगे ।
दसवां अध्ययन -पिण्डेषणा ( आहार ) :
इस अध्ययन में ग्यारह उद्देशक हैं। सभी उद्देशकों में श्रमण को संयम रक्षार्थं अपनी साधना के अनुकूल किस प्रकार का आहार -पानी ग्रहण करना चाहिए और किस प्रकार का आहार -पानी ग्रहण नहीं करना चाहिए - इस सम्बन्ध में निर्देश है । ग्यारहवां अध्ययन - शय्यैषणा ( वसती ) :
इस अध्ययन में तीन उद्देशक हैं । इनमें यह बताया गया है कि श्रमण को किन स्थानों पर किसकी अनुमति से, किस प्रकार निवास करना चाहिए। इस प्रकार इस अध्ययन में सदोष निर्दोष निवास-स्थान के सम्बन्ध में विस्तारपूर्वक विवेचन है ।
बारहवां अध्ययन - ईर्येषणा ( गमनागमन ) :
इस अध्ययन के तीनों उद्देशकों में श्रमण के आवागमन ( ईर्ष्यासमिति ) से सम्बन्धित नियमों का विवेचन है । इसमें यह बताया गया है कि श्रमण को किन मार्गों से आना-जाना चाहिए मार्ग में नदी आदि के होने पर उसे किस प्रकार पार करना चाहिए आदि । इस प्रकार इस अध्ययन में विहार सम्बन्धी सारे नियमों को स्पष्ट किया गया है । तेरहवां अध्ययन - भाषैषणा ( सम्भाषण ) :
इसमें यह बताया गया है कि साधक को कैसी भाषा बोलनी
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