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________________ १४ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन इस अध्ययन में राग-द्वेष आदि मानसिक विकार या अशुद्धि को दूरकर आत्म-शुद्धि करने का स्पष्ट निर्देश है । इस अध्ययन में पाँच उद्देशक हैं । प्रथम उद्देशक में मुक्ति मार्ग की चर्चा, हिंसाजन्य चिकित्सा का परिहार, परिजनों के प्रति आसक्ति का त्याग आदि का निरूपण है। द्वितीय उद्देशक में कर्म-परित्याग की चर्चा है । तृतीय उद्देशक में उपकरण व शरीर-त्याग तथा संयम एवं विनय सम्बन्धी विवेचन है। चतुर्थ उद्देशक में गारव-त्याग का वर्णन है और पाँचवें उद्देशक में कषायत्याग पर बल दिया गया है साथ ही तितिक्षा भाव धारण करते हुए जन-सामान्य को धर्मोपदेश देने का निर्देश है। सातवां अध्ययन ( महापरिज्ञा ): इस अध्ययन का नाम 'महापरिज्ञा' है। वर्तमान में यह अध्ययन अनुपलब्ध है। आचारांग नियुक्तिकार के मतानुसार इस अध्ययन में सात उद्देशक थे जिनमें मोहजन्य परीषहों एवं उपसर्गों का वर्णन था।३८ कुछ आचार्यों का कहना है कि इसमें मन्त्र विद्या आदि के प्रयोग साधक को संयम में स्थिर रखने के लिए वर्णित थे। बाद में उनका दुरुपयोग होता देखकर इसके अध्ययन पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया हो और पठन-पाठन कम होने से भी यह अध्ययन लुप्त हो गया हो अथवा आचाराङ्ग से पृथक् कर दिया गया हो । सभी साधकों का मानसिक स्तर समान नहीं होता। कुछ दृढ़ मनोबल वाले होते हैं तो कुछ निर्बल चिन्तन वाले भी होते हैं। जो भी कारण रहा हो परन्तु इस अध्ययन के विच्छेद से साहित्यिक क्षति अवश्य हुई है। माठवां अध्ययन ( विमोक्ष): इस अध्ययन का नाम विमोक्ष है। इसमें आठ उद्देशक हैं। इनमें विशेषतः समाधिरूप आचार एवं त्यागमय जीवन का वर्णन हुआ है। प्रथम उद्देशक में असमनोज्ञ ( अप्रशस्त आचार-विचार वाले) भिक्षुओं के साथ व्यवहार नहीं करने का निर्देश है, साथ ही अहिंसा सम्बन्धी निरूपण भी हुआ है। द्वितीय उद्देशक में श्रमण के लिए निर्देश है कि वह किसी भी परिस्थिति में अकल्प्य वस्त्र-पात्र एवं आहार आदि ग्रहण न करे। तृतीय उद्देशक प्रव्रज्या, अपरिग्रह एवं कुशंका निवारण से सम्बन्धित है। चौथे और पाचवें उद्देशक में उपकरण एवं शरीर विमोक्ष का प्रतिपादन है। साथ ही अतिवृद्ध ग्लानभिक्षु के लिए भक्त परिज्ञा ( अनशन ) एवं वैखानस तप स्वीकार करने का निर्देश है। छठे, सातवें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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