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________________ ८: आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन आधार पर द्वितीय श्रुतस्कन्ध में पांच महाव्रतों एवं उनकी पच्चीस भावनाओं के रूप में विस्तार से विचार किया गया है । (२) प्रथम श्रु तस्कन्ध के द्वितोय अध्ययन के पाँचवें उद्देशक एवं अष्टम अध्ययन के द्वितीय उद्देशक में जो भिक्षाचर्या निरूपित है उसी को दृष्टिगत रखते हुए द्वितीय श्रुतस्कन्ध में एकादशपिण्डेषणाओं की विस्तृत विवेचना की गयी है । (३) प्रथम श्रुतस्कन्ध–पाँचवें अध्ययन के चतुर्थ उद्देशक 'गामाणुगामं दुहज्जमाणस्स-' एवं 'जयविहारो चित्तणिवाती-' सूत्रों के आधार पर द्वितीय श्रुतस्कन्ध के सम्पूर्ण 'ईर्या' अध्ययन का विस्तार किया गया है। (४) प्रथम श्रुतस्कन्ध के छठे अध्ययन के पांचवें उद्देशक 'आइक्खे विभए किट्टे वेयवी-' तथा आठवें अध्ययन के प्रथम उद्देशक ‘अदुवा वयगुत्ति' सूत्रों में संक्षेप में वर्णित भाषा समिति द्वितीय श्रु तस्कन्ध के 'भाषणा' नामक अध्ययन का मूल है । (५) प्रथम श्रुतस्कन्ध-द्वितीय अध्ययन के पांचवें उद्देशक के 'वत्थं पडिग्गहं कंबलं-' सूत्र को आधार मानकर द्वितीय श्रु तस्कन्ध में 'वस्त्रैषणा' 'पात्रैषणा', 'शय्यषणा', 'अवग्रह-प्रतिमा' आदि का विवेचन हुआ है। भगवान महावीर की साधनावस्था का वर्णन प्रथम श्रुतस्कन्ध के 'उपधानश्रुत' नामक नौवें अध्ययन में है। उसी आधार पर द्वितीय श्रुतस्कन्ध के 'भावना' नामक पन्द्रहवें अध्ययन ( तृतीया चूला ) में उनके जीवन वृत्त का विस्तार से वर्णन किया गया है। अतः कहा जा सकता है कि द्वितीय श्रु तस्कन्ध, प्रथम श्रुतस्कन्ध का विस्तार मात्र है और इसीलिए उसे चूलिका रूप कहा गया है। इस सम्बन्ध में आचाराङ्ग नियुक्तिकार का स्पष्ट कथन है कि द्वितीय श्रु तस्कन्ध में, प्रथम श्रुतस्कन्ध में वर्णित आचार का विस्तृत विवेचन हुआ है तथा शिष्यों के हित की दृष्टि से उसकी रचना की गई है।३२ वे यह भी कहते हैं कि द्वितीय श्रु तस्कन्ध के रचयिता भी स्थविर हैं ।33 जर्मन विद्वान् प्रो० याकोबी भी प्रथम श्रु तस्कन्ध को ही मौलिक मानते हैं ।३४ आचार्य आत्माराम जी ने आचाराङ्ग की भूमिका में द्वितीय श्रुत स्कन्ध को भी प्रथम श्रु तस्कन्ध जितना ही प्राचीन एवं मौलिक माना है । यहाँ अधिक विवाद में न जाकर केवल इतना ही कहना पर्याप्त है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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