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सप्तम अध्याय : पंच महाव्रतों का नैतिक दर्शन १६८ - २०१ अहिंसा की सार्वभौमिकता या प्राथमिकता- १६८, आचारांग में अहिंसा की भावना - १६८, विभिन्न धर्मों में अहिंसा की अवधारणा - १७०, हिंसा का अर्थ- १७१, हिंसा के रूप द्रव्य और भाव - १७२, हिसा के विभिन्न कारण- १७६, हिंसा के विविध रूप - १७७, अपकाय की हिंसा-१७७, अग्निकाय की हिंसा १७८, वायुकाय की हिंसा - १७८, वनस्पतिकाय की हिंसा - १७८, त्रसकाय की हिंसा - १७९, हिंसा के प्रकार - १७९, हिंसा के परिणाम- १८०, अहिंसा महाव्रत - परिभाषा एवं स्वरूप१८०, गुप्ति - १८२, समिति - १८३, अहिंसा की नैतिक एवं मनोवैज्ञानिक आधार की भूमिका - १८६, सत्य महाव्रत - १८९, अस्तेयव्रत - १९१, ब्रह्मचर्य - १९२, अपरिग्रह महाव्रत - १९५, महाव्रतों की महत्ता एवं उपादे - यता - १९७, सन्दर्भसूची - १९८ ।
अष्टम अध्याय : श्रमणाचार
सदाचार का महत्त्व, श्रमण - २०२, की व्याख्या२०३, सामान्य श्रमणाचार - २०४, विशेष श्रमणाचार२०५, पांच महाव्रत और उनकी पच्चीस भावनाएं२०५, पांच समितियाँ - २०८, ईर्ष्या समिति - २०८, भाषा समिति - २१३, एषणा समिति - २१६, सदोष आहार२१६, आहार की ग्राह्यता - अग्राह्यता - २१८, वनस्पतिपत्र, पुष्प एवं फल की ग्राह्यता - २१९, भिक्षा हेतु गमन - २१९, भिक्षा के लिए अयोग्य एवं योग्य कुल- २२०, गृहस्थ के घर भिक्षा हेतु न जाने के अवसर - २२०, भिक्षा हेतु निषिद्ध मार्ग- २२०, अयोग्य स्थान, सखंड में जाने के निषिद्धस्थान - २२२, संखडि भोजन से हानियाँ - २२३, बाहर जाते समय की मर्यादा२२४, पश्चात् एवं पूर्व कर्म दोषयुक्त आहार का निषेध - २२५, अधिक आहार आ जाने पर क्या करना चाहिए - २२५, पानी - २२५, पानी की सदोषता एवं निर्दोपता - २२५, सात-सात प्रतिमाओं के साथ आहार-पानी
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