________________
1
- १२ -
की गवेषणा - २२६, प्रतिमाधारी मुनि का अन्य के साथ बर्ताव २२७, आहार-पानी में समभाव वृत्ति-२२७ । वस्त्र-२२८, पात्र- २३१, शय्यैषणा- २३२, योग्य-अयोग्य ( शय्या संस्तारक ) - २३७, परिष्ठापनिका समिति - २३९, तीनगुप्ति - २४१, मनोगुप्ति - २४२, वचनगुप्ति - २४२, काय गुप्ति - २४२, बारह भावनायें २४३, दशविध मुनि धर्म - २४४, अवग्रह याचना की विधि २४५, पाँच प्रकार के अवग्रह - २४७, इन्द्रियनिग्रह - २४८, चिकित्सा परिहार - २५०, अन्योन्य क्रिया रूप आचार २५०, चातुर्मास एवं मास सम्वन्धी कल्प - २५१, विशेष श्रमणाचार - २५३, तपश्चर्या - २५३, तप के भेद - २५३, बाह्यतप-२५४, अनशन - २५४, अवमौदर्यं ( उणोदरी ) २५५, भिक्षाचरी या वृत्तिपरिसंख्यान तप- २५५, रसपरित्याग - २५६, कायक्लेशतप- २५६ । प्रतिसंलीनता या विविक्तशय्यासन - २५७, आभ्यन्तर तप-२५८, प्रायश्चित्त - २५८, विनय - २५८, वैयावृत्य- २५८, स्वाध्याय-२५९, ध्यान-२५९, व्युत्सर्गं या कायोत्सर्ग - २५९, कायोत्सर्ग के चार अभिग्रह - २६०, परीषह - २६०, समाधिमरण भी एक कला है - २६२, संलेखना का महत्त्व - २६३, संलेखना का अर्थ व स्वरूप - २६४, संलेखना का समय - २६४, संलेखनाविधि - २६५, समाधि - मरण के प्रकार-२६७, भक्तप्रत्याख्यान - २६८, इत्वरिक अनशन - २७०, पादोपगमन अनशन शरीर विमोक्ष के सन्दर्भ में - २७२ स्थान विधि एवं महत्व - २७३, विशेष आचार, २७४, संलेखना आत्मघात नहीं है - २७५, सन्दर्भ सूची - २७५,
उपसंहार सहायक ग्रन्थ-सूची
Jain Education International
For Private-& Personal Use Only
२८२ २८९
www.jainelibrary.org