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विधानवाद-८२, वैधानिक विधानवाद-८३, धार्मिक विधानवाद-८४, बाह्य विधानवाद की समीक्षा-८७, विकासवाद और आचारांग-८९, आत्मसंरक्षण की प्रवृत्ति-९०, परिवेश से अनुरूपता-९१, विकास की प्रक्रिया में सहायक होना-९२, जीवन की लम्बाईचौड़ाई-९२, सुखवाद और आचारांग-९३, सुखवादी परम्परा-९३, मनोवैज्ञानिक सुखवाद और आचारांग-९४, नैतिक सुखवाद और आचारांग-९५, बुद्धिपरतावाद और आचारांग-१००, सार्वभौमविधान सूत्र-१०१, प्रकृतिविधान का सूत्र-१०२, स्वयंसाध्य का सूत्र-१०३, स्वतन्त्रता का सूत्र-१०४, साध्यों के राज्य का सूत्र-१०५, काण्ट और आचारांग-१०५, आत्म
पूर्णतावाद और आचारांग-१०८, सन्दर्भ-सूची-११६ । पंचम अध्याय : आचारांग का नैतिक मनोविज्ञान १२१-१४९
मनोविज्ञान और आचार शास्त्र का सम्बन्ध-१२१, बन्धन के कारण-१२१, राग-द्वेष और मोह-१२१, मूल कारण-१२२, कषाय-१२३, कषायों की पारस्परिक सापेक्षता-१२४, कषाय-विसर्जन का मनोवैज्ञानिक उपाय-१२६, लेश्या-१२८, इन्द्रिय-निग्रह ( संयम) १२९, दमन की मनोवैज्ञानिकता-१३२, आचारांग के अनुसार मनोनिग्रह से तात्पर्य एवं दमन के दुष्परिणाम-१३७, मानसिक शुद्धीकरण की मनोवैज्ञानिक
विधि-१४३, सन्दर्भ-सूची। षष्ठ अध्याय : आचारांग का मुक्तिमार्ग १५०-१६७
आचारांग में सम्यग्दर्शन शब्द का प्रयोग एवं उसके पर्यायवाची-१५२, सम्यग्दर्शन-विभिन्न अर्थ में-१५२, साधना का मूलाधार-सम्यग्दर्शन-१५६, सम्यकज्ञान-१६०, सत्य प्राप्ति की खोज का प्रथम चरणसन्देह (जिज्ञासा )-१६१, सम्यक् ज्ञान (राइट नालेज ) का अर्थ-१६३, सम्यक्-चारित्र-१६४, सन्दर्भ सूची-१६५ ।
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