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________________ नैतिक प्रमाद और आचाराङ्ग : १०५ चाहिए । यदि हम सार्वभौम-विधान या नियम में स्वतंत्रता का अनुभव नहीं करते हैं तो हमारा कर्म अनैतिक है। सार्वभौम नियम में ही स्वतंत्रता की सिद्धि होती है । इस दृष्टि से यह सूत्र भी आत्मौपम्य भावना का प्रतिपादन करता है। तुलनात्मक दृष्टि से विचार करने पर हम कह सकते हैं कि इस सूत्र में सन्निहित भाव आचारांग में अहिंसा सिद्धान्त के रूप में उपलब्ध हैं और इसे ही नैतिकता की कसौटी माना गया है। आचारांग में आत्मा की स्वतंत्र शक्ति को भी व्यक्त किया गया है।११९ आत्मा का उत्थान-पतन आत्मा पर ही निर्भर है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि काण्ट के विचार आचारांग की मान्यता से बहुत कुछ समानता रखते हैं। (५) साध्यों के राज्य का सूत्र : काण्ट को साध्यों के राज्य का सूत्र भी यही प्रतिपादित करता है कि सबको समान मूल्य वाला समझो । नैतिकता का यह सूत्र सार्वभौम नियम है । इस सूत्र में निहित भाव आचारांग में 'आत्मवत् सर्वभूतेषु' के रूप में देखे जा सकते हैं । अहिंसा ही सामाजिकता के विस्तार का हेतु है । पारस्परिक व्यवहार को 'सर्वथा अविरोधी' बनाना अहिंसा की पहली शर्त है । इस दृष्टि से दोनों में विचार साम्य है । निष्कर्ष यह है कि काण्ट के सभी नीति-सूत्रों में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष किसी-न-किसी रूप में समत्व, अनासक्ति, आत्मौपम्य दृष्टि के भाव ध्वनित हैं । इस प्रकार काण्ट का दृष्टिकोण आचारांग के दृष्टिकोण के अत्यधिक निकट प्रतीत होता है। काण्ट और आचारांग: ___काण्ट इन्द्रिय-निग्रह का प्रबल पक्षपाती है। वह अपने दर्शन में इच्छाओं, वासनाओं और मनोवेगों के दमन पर जोर देता है। काण्ट द्वारा प्रस्तुत 'निग्रह' या 'दमन' का प्रत्यय आचारांग में भी स्वीकृत रहा है। उसमें देह-दमन एवं इन्द्रिय निग्रह पर काफी बल दिया गया है । आचारांग में कहा गया है कि साधक को भावस्रोत का परिज्ञान कर तथा दमनेन्द्रिय बन संयम में विचरण करना चाहिए । १२० उसमें यह भी निर्देश है कि मोक्ष के इच्छुक साधक को कामनाओं को छिन्नभिन्न कर डालना चाहिए । १२१ । आचारांग में देह-दमन के सन्दर्भ में लिखा है कि प्रज्ञाप्राप्त मनि की बाहें कृश होती हैं, उनके शरीर का रक्त और मांस सूख जाता है । १२२ वास्तव में इच्छाओं, वासनाओं का दमन मनोवैज्ञानिक दृष्टि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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