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________________ १०२ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन प्रतिष्ठित है जो उसकी त्रैकालिक सार्वभौमिकता को सिद्ध करता है अहिंसा नैतिकता का सामान्य या सार्वभौमिक मौलिक नियम है । आचारांग के अनुसार यदि विश्व का कोई सार्वभौमिक या सर्वसामान्य धर्मं (नियम) बन सकता है तो वह अहिंसा ही है । अहिंसा धर्म की चर्चा करते हुए कहा है कि किसी भी प्राणी, भूत, सत्य या जीव को कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए । यह अहिंसा धर्म शुद्ध, नित्य और शाश्वत है ।" हम अपने लिए जिसकी इच्छा करते हैं उसको दूसरों के लिए भी करनी चाहिए और जिसकी इच्छा अपने लिए नहीं करते हैं, दूसरों के लिए भी उसकी इच्छा नहीं करनी चाहिए। इससे यही फलित होता है कि प्राणी मात्र को आत्मवत् समझना चाहिए । आचारांग में इसी आत्मौपम्य - सिद्धान्त को आचरण के शुभाशुभत्व का शाश्वत प्रतिमान स्वीकार किया गया है । १०० इस प्रकार संक्षेप में इतना ही कहना पर्याप्त होगा कि काण्ट की प्रथम नीतिवाक्य सम्बन्धी धारणा आचारांग में आत्मौपम्य दृष्टि या अहिंसा - सिद्धान्त के रूप में स्वीकृत रही है । इस दृष्टि से दोनों के विचारों में काफी सादृश्य है ।९ सूत्रकृतांग, उत्तराध्ययन, १०१ दशवैकालिक, १०२ प्रश्नव्याकरण, 903 में भी ये ही विचार मिलते हैं । आचारांग के समान बौद्ध परम्परा के सुत्तपिटक, धम्मपद, तथा वैदिक परम्परा के महाभारत, गीता, मनुस्मृति, हितोपदेश, १० में भी इस तरह के विचार दृष्टिगोचर होते हैं । ( २ ) प्रकृति-विधान का सूत्र : १०४ १०६ काण्ट का दूसरा सूत्र प्रकृति विधान का है । काण्ट के अनुसार जो कर्म प्रकृति की एकरूपता एवंसोद्देश्यता के अनुरूप होगा वही प्राकृतिक कहा जाएगा। इसके विपरीत किया जाने वाला कर्म अप्राकृतिक होगा । काण्ट के इस सूत्र का अभिप्राय यह है कि मानव को आदर्श प्रकृति के अनुरूप कर्म उचित होगा, इसके विपरीत कर्म अनुचित । जैन दर्शन में इसे यह कहकर प्रकट किया गया है कि स्वभावदशा की ओर ले जाने वाले कर्म नैतिक और विभावदशा की ओर ले जाने वाले कर्म अनैतिक होते हैं । Jain Education International १०५ आचारांग के अनुसार समता रूपी स्वभाव की उपलब्धि नैतिकता का आवश्यक तत्त्व है । आचार्य कुन्दकुन्द ने समयसार में १०९ आनन्दघन जी ने आनन्दघनचौबीसी १० में एवं उपाध्याय यशोविजय जी ने अध्यात्मसार एवं अध्यात्मौपनिषद् १२ में भी स्वभाव और परभाव ( विभाव ) For Private & Personal Use Only १०७ www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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