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९६ : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन
दोनों में पर्याप्त मतभेद है । नैतिक सुखवादी भौतिक सुखों को महत्त्व देता है। इसके विपरीत आचारांग, सुख के आध्यात्मिक स्वरूप पर बल देता है | वह अव्याबाध सुख के अनुसरण की बात करता है । अव्याबाध सुख की अवस्था आध्यात्मिक परमानन्द की अवस्था है और यही मुक्ति या पूर्णता की स्थिति है । आचारांग में 'निर्वाण' 'परिनिर्वाण' 'मोक्ष' 'प्रमोक्ष' या 'मुक्ति' की अवधारणा तो अवश्य है किन्तु उसमें कहीं स्पष्टतः अबाध सुख की अवधारणा नहीं मिलती । परवर्ती जैनागम सूत्रकृतांग में दस प्रकार के सुख वर्णित हैं जो इस प्रकार हैं - (१) साम्पत्तिक सुख, (२) काम-सुख, (३) भोग-सुख, (४) शुभभोग-सुख, (५) आरोग्य - सुख, (६) दीर्घायु सुख, (७) सन्तोष-सुख, (८) निष्क्रमण - सुख - (९) अस्तित्व सुख (१०) अनाबाध सुख । 43
जैनाचार्यों ने सांसारिक सुखों का कारणभूत होने से साम्पत्तिक सुख को भी 'सुख' माना है । ६४ आचारांग में यह कहा गया है कि भोग और अर्थ में आसक्त व्यक्ति, स्वयं को अमर की भाँति मानता है और आचरण भी तदनुरूप हो करता है । उसका यह दृढ़ विश्वास होता है कि इस लोक में तपश्चर्या, इन्द्रिय - निग्रह, अहिंसादि यम-नियम का कोई फल नहीं दिखाई देता । ये सब व्यर्थ हैं, अतः वह अर्थ- मूढ़ व्यक्ति बार-बार सुख की अलभाषा करता है, किन्तु अन्ततोगत्वा सुख के बदले दुःख ही पाता है । इससे स्पष्ट है कि आचारांग के अनुसार आर्थिक या साम्पत्तिक सुख, दुःख- वृद्धि और क्रन्दन का कारण होने से त्याज्य है ।
काम और भोग सुख के सन्दर्भ में विचार करते हुए आचारांग में कहा गया है कि इससे वास्तविक सुख प्राप्त नहीं होता अपितु जीव संसार रूप दुःख-चक्र में घूमता रहता है । इसीलिए आचारांग में इस कामभोग को दु:ख, मोह, मृत्यु, नर्क और तिर्यञ्चगति का महाकारण बताकर उसके परित्याग पर बल दिया गया है । ६७ आचारांग के अनुसार यह कहा जा सकता है कि उच्च स्तरीय सुखों की प्राप्ति के लिए निम्नस्तरीय सुखों का त्याग कर देना चाहिए। इस दृष्टि से 'शुभ-भोग' सुख मानसिक या वैचारिक सुख का द्योतक है" और कल्याणकारी कर्म का भी । १९ इस दृष्टि से अवलोकन करें तो दैहिक सुखों की अपेक्षा मानसिक या बौद्धिक सुख श्रेष्ठ है । अतः मानसिक सन्तुष्टि या सुख के लिए दैहिक सुख का त्याग करना चाहिए ।
आचारांग में कहा है कि बोधि सम्पन्न साधक के लिए सत्यप्रज्ञ अन्तःकरण से पाप कर्म अकरणीय होता है । ७० बुद्ध ने भी कायिक और
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