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________________ ९४ : आचाराङ्ग का नोतिशास्त्रीय अध्ययन का परम साध्य मानता है। सुखवाद को अंग्रेजी भाषा में हिडोनिज्म ( Hedonism ) कहते हैं । यह यूनानी शब्द 'हिडोन' से बना है जिसका अर्थ होता है-सुख । प्रत्येक मानव का चरम लक्ष्य 'सुख' प्राप्त करना है, यही सुखवाद कहलाता है । सुखवादी यह मानते हैं कि नैतिक दृष्टि से वही कर्म या आचरण शुभ है, जो सुख को उत्पन्न करता है या इन्द्रिय-जन्य वासनाओं को सन्तुष्टि देता है, और वह आचरण या कर्म अशुभ है जो वासनाओं की पूर्ति करने मैं बाधक है या दुःख देता है। सुखवाद के कई रूप हैं। उनमें से प्रमुख हैं-मनोवैज्ञानिक सुखवाद और नैतिक सूखवाद । प्राचीन सुखवाद मनोवैज्ञानिक है । वह वास्तविक तथ्य को स्वीकार करता है । आधुनिक सुखवाद मनोवैज्ञानिक तथ्य को स्वीकार करने के साथ ही आदर्शमूलक मान्यता को भी स्वीकार करता है। वह कहता है कि मनुष्य को सुख की खोज करनी चाहिए। मनोवैज्ञानिक सुखवाद को भी पुनः दो प्रकारों में बाँटा जा सकता है-स्थूल सुखवाद और संस्कृत या परिष्कृत सुखवाद । स्थूल सुखवादी अधिक से अधिक ऐन्द्रिक सुख ( दैहिक सुख ) की प्राप्ति को महत्त्व देते हैं जबकि परिष्कृत सुखवादी, शान्त सुख या मानसिक सुख को महत्त्व देते हैं। अब हम मनोवैज्ञानिक सुखवादी विचारधारा को दृष्टि में रखकर यह देखने का प्रयास करेंगे कि आचारांग का क्या दृष्टिकोण है ? (ख) मनोवैज्ञानिक सुखवाद और आचारांग : मनोवैज्ञानिक सुखवाद तथ्यात्मक है। मनोवैज्ञानिक सुखवादी विचारक यह मानकर चलते हैं कि मनुष्य स्वाभाविक रूप से सुख का खोजी है। तुलनात्मक दृष्टि से कह सकते हैं कि आचारांग भी इस मनोवैज्ञानिक सुखवादी अवधारणा का पोषक है, क्योंकि वह भी इस तथ्य को स्वीकार करता है कि समस्त प्राणी सुखेच्छु हैं । सूत्रकार का मन्तव्य द्रष्टव्य है-'सभी प्राणियों को अपने प्राण प्रिय हैं। सभी सुख चाहते हैं और दुःख से घबराते हैं'।५० सूत्रकार कहता है कि प्रत्येक जीव सुखेप्सु है। समस्त प्राणियों, भूतों, जीवों और सत्त्वों को ‘असाता', अशांति, त्रास और दुःख अप्रिय है .५१ इस प्रकार प्राणी अनुकूल या सुखद पदार्थों एवं साधनों के प्रति अनुराग रखता है और प्रतिकूल या दुःखद पदार्थों के प्रति द्वेष रखता है। 'सुखद विषयों की और प्रवृत्ति और दुःखद विषयों से बचाव', ये काम-वासना या आसक्ति के दो केन्द्र हैं और यही वासना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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