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________________ नैतिक प्रमाद और आचारांग : ८९ बन जाता है तब तक बाह्य साधनाओं, आचरणों एवं नियमों का विशेष मूल्य नहीं। विकासवाद और आचारांग : हर्बर्ट स्पेन्सर का सिद्धान्त विकासवादी सुखवाद के नाम से प्रसिद्ध है । स्पेन्सर नैतिक-नियमों को जैविक विकास के सिद्धान्तों से निर्गमित करता है। विकासवादी मानते हैं कि नैतिकता क्रमिक विकास का परिणाम है और इसे केवल विकास-प्रक्रिया के प्रकाश में हो समझा जा सकता है। उनकी मान्यता है कि विकास की अवस्था में नैतिकता सापेक्ष होती है और पूर्ण विकसित जीवन में नैतिकता निरपेक्ष हो सकती है। जो प्रतिक्रियाएँ जीवन को अधिक विकसित करती हैं, वे नैतिक हैं और जो उसमें अवरोध उत्पन्न करती हैं, वे अनैतिक हैं। स्पेन्सर का कहना है कि विकास की प्रक्रिया में सहायक बनकर पर्यावरण एवं समाज के साथ समायोजन स्थापित करना मनुष्य का परम लक्ष्य होना चाहिए। यह लक्ष्य, सुख के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। वह सुख को नैतिक जीवन का परम शुभ मानते हुए भी आत्म-रक्षण एवं जाति-संरक्षण को महत्त्व देता है। उसका कथन है कि 'जीवन का परम लक्ष्य सुख है, परन्तु सन्निकट लक्ष्य जीवन की लम्बाई और चौड़ाई है।२९ स्पेन्सर के शब्दों में सदैव आत्म-रक्षण की दिशा में प्रवृत्त विकास तब अपनी सीमा पर पहुँचता है जब व्यक्तिगत जीवन लम्बाई और चौड़ाई दोनों में महत्तम होता है ।३० हर्बर्ट स्पेन्सर जीवन-रक्षण की प्रवृत्ति को नैतिक जीवन का साध्य मानता है तथा उसे नैतिक प्रतिमान के रूप स्वीकार करता है। प्रत्येक प्राणी में आत्म-रक्षण एवं जोने की स्वाभाविक प्रवृत्ति एवं इच्छा है। स्पेन्सर के अनुसार अच्छा आचरण जीवनवर्धक होता है और बुरा आचरण, मृत्यु या जीवन-विनाश का कारण ।३१ विकासवादियों के अनुसार विकास का साध्य है, वातावरण से समायोजन करना । स्पेन्सर के शब्दों में सभी बुराइयों का स्रोत देह का परिवेश के अनुरूप न होना है ।३२ समायोजन ही जीवन का साध्य है और वही अच्छाई और बुराई का मानदण्ड भी है। इस प्रकार विकासवादी आचार-दर्शन में निम्नलिखित प्रमुख प्रत्ययोंसिद्धान्तों का नैतिक कसौटी माना गया है (१) आत्म-संरक्षण की प्रवृत्ति, (२) परिवेश के साथ अनुरूपता, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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