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________________ ९० : आचाराङ्ग का नीतिशास्त्रीय अध्ययन (३) विकास की प्रक्रिया में सहायक बनना, (४) जीवन की लम्बाई और चौड़ाई। अब हम आचारांग और विकासवादी-सिद्धान्त को तुलना करते हुए यह देखेंगे कि उनका आचारांग के साथ कितना साम्य है। आत्म-संरक्षण की प्रवृत्तिः ___ आत्म-रक्षण का प्रत्यय विकासवादी सिद्धान्त का प्रमुख प्रत्यय है । स्पेन्सर के उपर्युक्त जीवन-रक्षण के नैतिक प्रतिमान को आचारांग में भी कर्म के शुभाशुभत्व का आधार माना गया है। जीवन-रक्षण की स्वाभाविक प्रवृत्ति के आधार पर ही आचारांग का अहिंसा-सिद्धान्त प्रतिष्ठित है और उसे ही नैतिक निकष के रूप में मान्यता भी दी गई है। अहिंसा-सिद्धान्त से यह प्रतिफलित होता है कि जीवन-रक्षण शुभ है और जीवन-विनाश अशुभ है । जीवन-रक्षण की स्वाभाविक प्रवृत्ति के मनोवैज्ञानिक सत्य को प्रस्तुत करते हुए सूत्रकार कहता है कि 'सभी को अपने प्राण या अपना जीवन प्रिय है और मृत्यु अप्रिय है' । सुख सभी को अनुकूल है और दुःख प्रतिकूल है।33 यह भी माना गया है कि जीवनवर्धक होने के कारण सुख, सदैव अनुकूल प्रतीत होता है और जीवननाशक होने के कारण दुःख प्रतिकूल प्रतीत होता है । यद्यपि आचारांग का दृष्टिकोण स्पेन्सर के समान केवल स्व-रक्षण तक ही सीमित नहीं है, अपितु यह स्व-रक्षण के साथ प्राणि-मात्र के रक्षण को भी बात करता है। आचारांग कहता है कि जो अपनी पीड़ा को जानता है वह बाह्यजगत् की पीड़ा को जानता है। अतः अपनी सुख-दुःखात्मक अनुभूतियों के साथ अन्य जीवों की अनुभूतियों की तुलना कर उनकी रक्षा करना चाहिए।३४ यहाँ अनुभूति के तुल्यता-बोध के आधार पर समस्त प्राणिवर्ग के संरक्षण को प्रेरणा दी गई है । दूसरों के जीवन की रक्षा वही कर सकता है जो हिंसा या जीवन-विनाश के भयावह परिणामों को जानता है।३५ जो दूसरों को पीड़ा का आत्मवत् अनुभव करता है, वह हिंसा से निवृत्त होकर समस्त प्राणि-वर्ग के रक्षण का प्रयत्न करता है। स्पेन्सर के सिद्धान्त में जीवन-रक्षण का विचार मनोवैज्ञानिक सत्य के रूप में स्वीकार किया गया है और उसे नैतिकता का आधार भी माना गया है किन्तु उसे बौद्धिक आधार प्रदान नहीं किया गया है। जबकि आचारांग में अहिंसा-सिद्धान्त का सूक्ष्मातिसूक्ष्म विवेचन प्राप्त होता है और वह जीवन के सभी रूपों को समान महत्त्व देता है । दूसरे, मानवीय जगत् से लेकर वनस्पति जगत् तक के सभी जीवों के रक्षण की बात Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002111
Book TitleAcharanga ka Nitishastriya Adhyayana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyadarshanshreeji
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1995
Total Pages314
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Research, & Ethics
File Size13 MB
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