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________________ The Tirthas of Pārsvanātha in Rajasthan (Hindi) 141 "इस महातीर्थभूत पार्श्वनाथ के दर्शन से कलिकुण्ड, कुर्कुटेश्वर, श्रीपर्वत, शंखेश्वर, सेरीसा, मथुरा, वाराणसी; अहिच्छता, स्तंभ, अजाहर, प्रवरनगर, देवपत्तन, करहेड़ा, नागदा, श्रीपुर, सामिणि, चारूप, ढिंपुरी, उज्जैन, शुद्धदन्ती; हरिकंखी, लिम्बोडक आदि स्थानों में विद्यमान पार्श्वनाथ प्रतिमाओं का यात्रा करने का फल होता १५वीं शती में हेमराज सुराणा ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था । आज भी यह मन्दिर दर्शनीय है और चमत्कारपूर्ण है। ११. बिजोलिया पार्श्वनाथ—यह भीलवाड़ा जिले की बूंदी की सीमा पर स्थित है । यहां चट्टान पर खुदा हुआ "उत्तम शिखर पुराण" एवं वि० सं० १२२६ का चौहान-कालीन महत्वपूर्ण लेख है । मन्दिर भग्न हो गया है, केवल शिखर का भाग ही अवशिष्ट है । यह मन्दिर दिगम्बर परम्परा का है । चौहानकालीन १२२६ के लेख में ९२ पद्य एवं कुछ गद्य भाग है । लेख के ५६वें पद्य में लिखा है-श्रेष्ठि लोलाक की पत्नी ललिता को स्वप्न में यहाँ मन्दिर बनवाने का देव-निर्देश मिला था । इस लेख में यह उल्लेख भी मिलता है कि यहाँ कमठ ने उपसर्ग किया था । __उत्तम शिखर पुराण दूसरी चट्टान पर खुदा हुआ है । इसमें २९४ श्लोक हैं । इसके तीसरे सर्ग में कमठ के उपसर्ग का विस्तृत वर्णन भी मिलता है । १२. रतनपुर पार्श्वनाथ–रतनपुर मारवाड़ के पार्श्वनाथ मन्दिर का तीर्थ रूप में उल्लेख मिलता है । वि० सं० १२०९, १३३३, १३४३, १३४६ के लेखों से इसकी प्राचीनता और प्रसिद्धि स्पष्ट है, किन्तु आज यह तीर्थ महत्व-शून्य है । १३. रावण पार्श्वनाथ-अलवर से ५ कि०मी० दूर जंगल में रावण पार्श्वनाथ मन्दिर जीर्ण दशा में प्राप्त है । परम्परागत श्रुति के अनुसार यह मूर्ति रावण-मन्दोदरी द्वारा निर्मित थी । सं० १६४५ में श्रेष्ठि हीरानन्द ने रावण पार्श्वनाथ का भव्य मन्दिर बनवाकर खरतरगच्छीय आद्यपक्षीय शाखा के जिनचन्द्रसूरि के आदेश से वाचक रंग कलश से प्रतिष्ठा करवाई थी । १४४९ की कल्पसूत्र की प्रशस्ति तथा अनेक तीर्थ-मालाओं आदि में भी रावण तीर्थ का उल्लेख मिलता १४. लौद्रवा पार्श्वनाथ-जैसलमेर से १५ किलोमीटर पर यह तीर्थ है सहजकीर्ति निर्मित शतदलपद्म गर्भित चित्रकाव्य के अनुसार श्रीधर और राझधर ने चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मन्दिर बनवाया। श्रेष्ठि खीमसा ने मन्दिर भग्न होने पर नूतन मन्दिर बनवाया । इसके भी जीर्ण-क्षीर्ण होने पर जैसलमेर निवासी भणसाली गोत्रीय थाहरू शाह ने प्राचीन मन्दिर के नींव पर ही पंचानुत्तर विमान की आकृति पर नव्य एवं भव्य मन्दिर बनवाकर चिन्तामणि पार्श्वनाथ की श्यामवर्णी प्रतिमा विराजमान की इसकी प्रतिष्ठा खरतरगच्छीय जिनराजसूरि ने सं० १६७५ मिगसर सुदि १२ गुरुवार को की थी । मन्दिर के दायीं ओर समवसरण पर अष्टापद और उस पर कल्पवृक्ष की मनोहर रचना भी है । मन्दिर शिखरबद्ध है और शिल्पकला की दृष्टि से अनूठा है। ५. वरकाणा पार्श्वनाथ-राणीस्टेशन से ३ कि०मी० पर वरकाणा गांव है । "वरकनकपुर", प्राचीन नाम मिलता है । गोडवाड की प्रसिद्ध पंचतीर्थी में इस तीर्थ का प्रमुख स्थान है। कई बार इसका जीर्णोद्धार होने से प्राचीनता नष्ट हो गई है । शिवराजगणि ने आनन्दसुन्दर ग्रन्थ (र०सं० १५५९) के प्रारंभ में ही "वरकाणा पार्श्व प्रसन्नो भव" लिखकर इस तीर्थ की महिमा गाई है । महाराणा जगतसिंह ने सं० १६८७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002108
Book TitleArhat Parshva and Dharnendra Nexus
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages204
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Articles, History, Art, E000, & E001
File Size8 MB
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