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________________ Arbat Parsva and Dharanendra Nexus ७. नाकोड़ा पार्श्वनाथ— जोधपुर से बाड़मेर रेलवे के मध्य में बालोतरा स्टेशन से १० कि० मी० दूरी पर मेवानगर ग्राम में यह तीर्थ है । वस्तुतः ग्राम का नाम वीरमपुर या नगर था किन्तु महेवा और नगर का मिश्रण होकर यह स्थान अभी मेवानगर कहलाता है । नाकोड़ा ग्राम के तालाब से प्रकट इस पार्श्वनाथ प्रतिमा की इस स्थान पर स्थापना / प्रतिष्ठा अनुमानतः वि०सं० १५१२ में खरतरगच्छीय कीर्तिरत्नसूरि ने की थी । संस्थापक कीर्तिरत्नसूरि की मूर्ति भी (१५३६ में प्रतिष्ठित ) मूल मण्डप के बाहर बायीं ओर के आले में विराजमान है । नाकोड़ा में प्रकटित होने के कारण ही नाकोड़ा पार्श्वनाथ के नाम से इसकी प्रसिद्धि हुई है । यहाँ के अधिष्ठायक भैरव भी नाकोड़ा भैरव के नाम से सारे भारत में विख्यात हैं । वर्तमान में श्रद्धालु यात्री भी ४००-५०० के लगभग प्रतिदिन आते हैं। राजस्थान के समस्त तीर्थों की तुलना में आय भी इसकी सर्वाधिक है । मन्दिर भी विशाल और रमणीय है । व्यवस्था भी सुन्दर है । ८. नागफणा पार्श्वनाथ — यह मन्दिर उदयपुर में है । साराभाई म० नवाब की पुस्तक "पुरिसादाणी श्री पार्श्वनाथजी " के अनुसार महाराणा प्रताप ने धरणेन्द्र - पद्मावती सहित पार्श्वनाथ की आराधना से ही पिछले युद्धों में विजय प्राप्त कर इस मन्दिर का निर्माण करवाया था, जो नागफणा पार्श्वनाथ के नाम से आज भी प्रभावशाली माना जाता है । 140 ९. नागहृद नवखण्डा पार्श्वनाथ - उदयपुर से २२ कि०मी० पर नागदा गाँव है । यहाँ वर्तमान में सं० १४९४ में खरतरगच्छीय जिनसागरसूरि प्रतिष्ठित शान्तिनाथ का मन्दिर है । किन्तु मुनिसुन्दरसूरि रचित नागहृद तीर्थस्तोत्र, जिनप्रभसूरि के फलविधि पार्श्वनाथ तीर्थकल्प में नागहृद पार्श्वनाथ के उल्लेख प्राप्त हैं। राजगच्छीय हीरकलश रचित (१५वीं शती) मेदपाट देश तीर्थमाला-स्तव पद्य ३ में नवखण्डा पार्श्वनाथ का उल्लेख है । यहाँ पार्श्वनाथ का जीर्ण मन्दिर भी है । मंदिरस्थ मूर्ति के एक पभासण के नीचे १९९२ का लेख प्राप्त है । आलोक पार्श्वनाथ — नागदा में ही एकलिंग जी के मन्दिर के पास ही दिगम्बर परम्परा का आलोक पार्श्वनाथ का मन्दिर था जिसे समुद्रसूरि ने श्वेताम्बर तीर्थ के रूप में परिवर्तित कर दिया था । १७वीं शताब्दी से अनेकों श्वे० शिलालेख प्राप्त है । आलोक पार्श्वनाथ मंदिर का उल्लेख बिजोलिया के १२३६ वाले शिलालेख में भी प्राप्त है। १०. फलवर्द्धि पार्श्वनाथ — मेड़ता रोड़ जंक्सन स्टेशन से एक फर्लांग की दूरी पर फलोधी नामक गाँव है जो फलौधी पार्श्वनाथ या मेड़ता फलौधी के नाम से मशहूर है। राजस्थान के प्राचीन तीर्थस्थानों में इसकी गणना की जाती है । जिनप्रभसूरि रचित फलवर्द्धि पार्श्वनाथकल्प के अनुसार मालवंशीय धांधल और ओसवाल वंशीय शिवकर ने भूमि से प्राप्त सप्तफला पार्श्वनाथ की प्रतिमा नवीन विशाल गगनस्पर्शी मन्दिर बनवाकर स्थापित की और इसकी प्रतिष्ठा वि०सं० १९८१ में राजगच्छ ( धर्मघोषगच्छ) के शीलभद्रसूरि के शिष्य धर्मघोषसूरि ने की थी । सं० १२३३ में शहाबुद्दीन गौरी ने मूर्ति का अंग-भंग किया, तथापि प्राचीन एवं देवाधिष्ठित होने के कारण यही मूर्ति मूलनायक के रूप में ही रही । पुरातन - प्रबन्ध-संग्रह के अनुसार पारस श्रेष्ठि ने वाद विजेता वादीदेवसूरि के तत्त्वावधान में इस गगनचुम्बी मन्दिर का निर्माण १९९९ में करवाया और इसकी प्रतिष्ठा वादिदेवसूरि के पट्टधर मुनिचन्द्रसूरि ने १२०४ में करवाई । इस तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुए जिनप्रभसूरि तो यहाँ तक लिखते है Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002108
Book TitleArhat Parshva and Dharnendra Nexus
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages204
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Articles, History, Art, E000, & E001
File Size8 MB
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