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________________ The Tirthas of Parsvanatha in Rajasthan (Hindi) 139 से प्राप्त की थी । इसकी प्रतिष्ठा वि० सं० १६७८ वैशाख सूदि पूर्णमा को खरतरगच्छ की आद्यपक्षीय शाखा के जिनदेवसूरि के पट्टधर पंचायण भट्टारक जिनचन्द्रसूरि ने करवाई थी । मूलनायक की चारों मूर्तियां परिकरयुक्त है । ३. चंवलेश्वर पार्श्वनाथ — जहाजपुर तहसील में पारोली से ६ मि०मी० की दूरी पर वर्तमान में प्रसिद्ध चंवलेश्वर पार्श्वनाथ का मन्दिर है । अधुना श्वेताम्बर दिगम्बर के विवाद में उलझा हुआ 1 पं० कल्याणसागर रचित पार्श्वनाथ चैत्य परिपाटी में, मेघविजयोपाध्याय कृत पार्श्वनाथ नाममाला में और जिनहर्षगणि कृत पार्श्वनाथ १०८ नाम स्तवन में इस तीर्थ का उल्लेख प्राप्त है । ४. चित्तौड़ सोमचिन्तामणि पार्श्वनाथ -- राजगच्छीय हीरकलश द्वारा १५वीं शती में रचित मेदपाटदेश तीर्थमाला स्तव पद्य १६ के अनुसार यहाँ श्री सोमचिन्तामणि पार्श्वनाथ का तीर्थ स्वरूप विशाल मन्दिर विद्यमान था, किन्तु आज नामोनिशान भी नहीं है । उत्खनन में प्राप्त कमलदल चित्र काव्य मय शिलापट्ट के अनुसार अनुमानत: १९६२ में जिनवल्लभगणि (जिवल्लभसूरि) ने पार्श्वनाथविधि चैत्य की प्रतिष्ठा की थी । ५. जीरावाला पार्श्वनाथ - खराड़ी से आबू - देलवाड़ा के मार्ग पर ३० कि०मी० और अणादरा गाँव से १३-१४ कि०मी० की दूरी पर यह गाँव । इसका प्राचीन नाम जीरिकापल्ली, जीरापल्ली, जीरावल्ली प्राप्त होता है । उपदेश सप्तति के अनुसार ११०९ एवं वीरवंशावली के अनुसार १९९१ में श्रेष्ठि धांधल ने देवीत्री पर्वत की गुफा से प्राप्त प्रतिमा की इस गाँव में नवीन मंदिर बनवाकर स्थापना की थी और प्रतिष्ठा अजितदेवसूरि ने की थी । यह तीर्थ जीरावला पार्श्वनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुआ । अलाउद्दीन खिलजी द्वारा १३६८ यह प्रतिमा खंडित कर दी गई। विलेपन करने पर भी नवअंग (भाग) स्पष्ट दिखाई देते थे । खंडित मूर्ति मुख्य स्थान में शोभा नहीं देती, अतः परवर्ती आचार्यों ने मुख्य स्थान पर नेमिनाथ की मूर्ति स्थापित कर दी और इस मूर्ति को दाईं ओर विराजमान कर दी । उपदेश तरंगिणी (प० १८ ) के अनुसार संधपति पेथड़ शाह और झांझण शाह ने यहाँ एक विशाल मन्दिर बनवाया था और महेश्वर कवि रचित काव्य मनोहर (सर्ग ७ श्लो० ३२ ) के अनुसार सोनगिरा श्रीमालवंशीय श्रेष्टि झांझक्ण के पुत्र संधपति आल्हराज ने भी इस महातीर्थ पर उन्नत तोरण युक्त विशाल मन्दिर बनवाया था, किन्तु आज इनका कोई अता-पता नहीं है । इस महातीर्थ की प्रसिद्धि इतनी अधिक हुई कि आज भी प्रतिष्ठा के समय भगवान की गद्दी पर विराजमान करने के पूर्व गद्दी पर जीरावला पार्श्वनाथ का मन्त्र लिखा जाता है । देलवाड़ा के सं० १४९१ के लेख के प्रारम्भ में " नमो जीरावलाय " लिखा है, जो इसकी प्रसिद्धि का सूचक है । जीरावाला नाम इतना अधिक विख्यात हुआ कि जीरावला पार्श्वनाथ के नाम से अनेकों स्थानों पर मन्दिर निर्माण जिनमें से हुए; हैं मुख्य-मुख्य धाणेराव, नाडलाई, नंदोल, बतोल, सिरोही, गिरनार, घाटकोपर ― (बम्बई) आदि । ६. नवलखा पार्श्वनाथ — पाली मारवाड़ में नवलखा दरवाजा के पास बावन जिनालय वाला विशाल नवलखा पार्श्वनाथ का प्रसिद्ध मन्दिर है । इस स्थान का प्राचीन नाम पल्लिका, पल्ली था । सं० ११२४, ११७८, १२०१ के प्राप्त लेखानुसार मूलतः यह महावीर स्वामी का मन्दिर था । सं० १६८६ के लेखानुसार नवलखा मन्दिर का जीर्णोद्धार हुआ था और पुर्नप्रतिष्ठा के समय पार्श्वनाथ की सपरिवार मूर्ति स्थापित की गई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002108
Book TitleArhat Parshva and Dharnendra Nexus
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky
PublisherL D Indology Ahmedabad
Publication Year1997
Total Pages204
LanguageEnglish, Hindi
ClassificationBook_English, Articles, History, Art, E000, & E001
File Size8 MB
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