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________________ मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र को लेकर पुरानी सभी जिन प्रतिमायें, जिनमें पूरे आठ प्रातिहार्य नहीं हैं, सिलावट को बिठाकर बाकी रहने वाले प्रातिहार्य तक्षित करवा देना चाहिए । तात्पर्य यह है कि भक्तामरकार को मूल में अष्ट प्रातिहार्य, और उसके समेत ४८ पद्य अभिप्रेत था, ऐसा कोई प्रमाण नहीं, बल्कि सभी प्रमाण इससे विपरीत हैं । इस दशा में “गम्भीरतार०" से शुरू होने वाला चार पद्य - जिसकी बेशक पिछली कुछ सदियों से दिगम्बर सम्प्रदाय में काफ़ी मान्यता रही है - क्षेपक ही होने से मूल स्तोत्र के पाठ में यदि न रखा जाय तो वह बिलकुल ही सुसंगत है । इसकी अनुपस्थिति से न तो स्तोत्र में कोई ‘अपूर्णता' रह जाती है, न उसमें आ जाती है ‘सदोषता' या विकृति । बल्कि चार पद्यों को घुसेड़ देने की प्रक्रिया को ही जबर्रदस्ती और बेतुका प्रयत्न माना जायेगा । उत्तर मध्यकालवालों के ऐसे प्रयत्नों को बहाल रखने से मूलकार के साथ सरासर अन्याय ही होगा । इस अध्याय के आखिरी चरण में कुछ दिगम्बर विद्वद्वर्यों के अभिप्रायों और कुछ श्वेताम्बर मुनियों एवं अन्य विद्वानों के मंतव्यों के अवलोकन के साथ वक्तव्य समाप्त करेंगे । श्रीमान् कटारिया का कथन रहा कि “श्वे० सम्प्रदाय भक्तामर के ३२ से ३५ तक के चार श्लोकों को नहीं मानता है कुल ४४ श्लोक ही मानता है इससे चारप्रातिहार्यों का वर्णन छूट जाता है जब कि श्वे० सम्प्रदाय में भी पूरे ८ प्रातिहार्य माने हैं । कल्याणमन्दिर स्तोत्र में भी ‘भक्तामर' की तरह पूरे आठ प्रातिहार्यों का वर्णन है और उसे श्वे० सम्प्रदाय भी अविकल रूप से मानता है तब फिर भक्तामरस्तोत्र के उक्त चार श्लोकों को श्वे० सम्प्रदाय क्यों नहीं मानता ? शायद यह कहा जाता है कि कल्याणमन्दिर में ४४ श्लोक हैं अत:, भक्तामर में भी ४४ ही होने चाहिए, अगर यह कहा जाता है तो यह अजीब तुक है । ऐसा तुक मिलानेवालों को चाहिए कि जिस तरह कल्याणमन्दिर में ८ प्रातिहार्यों का वर्णन है उसी तरह भक्तामर में भी ८ प्रातिहार्यों के वर्णन वाले पूरे श्लोक मानें, व्यर्थ श्लोक संख्या साम्य में पड़कर चार प्रातिहार्यों को न छोड़ें। _श्वे० स्थानकवासी कविवर मुनि अमरचन्दजी ने पूरे ४८ श्लोक मानकर ही भक्तामर का हिन्दी पद्यानुवाद किया है दूसरे भी श्वे० विद्वानों को इसका अनुकरण करना चाहिए ।" कटारियाजी के पूर्व अजितकुमार जी ने भी कुछ ऐसा ही कहा है; अलबत्ता वह उनकी निजी शैली, वलन-चलन, और पश्यता को वफ़ादार रहकर ही । “...... इतना ज़रूर है कि भक्तामरस्तोत्र को ४४ श्लोकों वाला मान लेने पर भक्तामरस्तोत्र अधूरा अवश्य रह जाता है, क्योंकि तीर्थकरों के प्रातिहार्य जिस प्रकार दिगम्बर सम्प्रदाय ने माने हैं उसी प्रकार के श्वेताम्बर सम्प्रदाय में प्रदाय में भी माने गये हैं । इन आठ प्रातिहार्यों का वर्णन जिस प्रकार कल्याणमन्दिर स्तोत्र में है, जिसको कि श्वेताम्बर सम्प्रदाय भी मानता है, उसी प्रकार भक्तामरस्तोत्र में भी रखा गया है । श्वेताम्बर सम्प्रदायके भक्तामरस्तोत्र में जिन ३२, ३३, ३४, ३५ संख्या वाले चार श्लोकों को नहीं रक्खा गया है उनमें क्रम से दुन्दुभि, पुष्पवृष्टि, भामण्डल और दिव्यध्वनि इन चार प्रातिहार्यों का वर्णन है । उक्त चार श्लोकों को न मानने पर ये चारों प्रातिहार्य छूट जाते हैं । अत: कहना पड़ेगा कि श्वेताम्बरीय भक्तामरस्तोत्र में सिर्फ चार ही प्रातिहार्य बतलाये हैं, जबकि श्वेताम्बरीय सिद्धान्तानुसार प्रातिहार्य आठ होते हैं, और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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