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________________ मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र उपनम्मि या नाणे उपज्जइ आसणं जिणिंदस्स । छत्ताइछत्त चामर तहेव भामण्डलं विमलं । कप्पदुमो य दिव्वो दुन्दहिघोसं च पुप्फवरिसं च । सव्वाइसायसम्मगो जिणवरइटिं समणुपत्तो ।। - पउमचरिय ४.१८- १९ वहाँ शेष रह जाने वाला अतिशय 'दिव्यध्वनि' इसलिए उल्लिखित नहीं है क्योंकि देशना का यह अवसर नहीं था । अन्यथा यहाँ महाप्रातिहार्य ही परिलक्षित है । परन्तु महावीर के समवसरण के प्रसंग में सिंहासन, छत्राधिछत्र, चामर, अशोक (वृक्ष) और भामण्डल इन पाँच ही विभूतियों का उल्लेख है, जो इसको नियुक्तिवाली परिपाटी के समीप ले जाता है ।३८ भयवं मि तिहुयणगुरू विचित्त सीहासणे सुहनिविठ्ठो । छत्ताइछत्त चामर असोग भामण्डलसणाहो ।। - पउमचरिय २.५३ पउमचरिय के पश्चात् संघदासगणि क्षमाश्रमण की प्रसिद्ध कथा वसुदेवचरित (प्राय: ईस्वी ५५०) में जिन शान्तिनाथ के समवसरण के अनुलक्ष में उपस्थित छह दिव्य विभूतियों में भामण्डल और दिव्यध्वनि नहीं है, पर धर्मचक्र है । चार तो वही हैं जो आवश्यकनियुक्ति, विशेषावश्यकभाष्य, और आवश्यकचूर्णि में हैं । विशेष में यहाँ देवदुन्दुभि है, यथा - 'ततो देवा भवण-विमाणाधिपयओ गंधादेय-कुसुमवरिसं च वासमाणा उपागया वंदिऊण भयवंतं परमसुमणसा संट्ठिया । वयणरेहिं य समंततो देवलोयभूयं कयं जोयणप्पमाणं । ततो हरिसवसवियसियनयणेहिं वेमाणिय-जोईसिय-भवणवईहिं रयण-कणय-रययमया पायरा खणेण निम्मिया माणिकणय-रयणकवि- सीसगोवसोहिया । तेसिं च पत्तेयं पत्तेयं चत्तारि दुवाराणि रययगिरि सिहरसरिसाइं। जत्थ य अरहा वियसियमुहो जगगुरू संठिओ । नंदिवच्छपायवो सो वि दिव्वपहावेण जयचक्खु रमणेण कप्परूक्खसारिक्खरूविणा रत्तासोगेण समोच्छण्णो । तण्णिस्सियं च सीहासणमागासफलिहमयं सवायपीठं देवाण विम्हयजणणं । उवरिं गगणदेशमंडणं सयलचेद पडिबिंब भूयं छत्ताइछत्तं । भवियजण बोहणहरे च भुवयं पुरच्छाभिमुहो सण्णिसण्णो । ठिपाय जक्खा चामरूक्खेवडक्खित्ता । पुरओ य तित्थयरपायमूले कणयमयसहस्सपत्तपइट्ठियं तरूणरविमंडल निभं धम्मचक्कं ।' ३९ संघदास उनको प्रातिहार्य नहीं कहते हैं परंतु सूत्रकृतांगचूर्णि (प्राय: ईस्वी ६७५-७००) में, एवं हरिभद्र की नन्दिवृत्ति (प्राय: ईस्वी ७४५) में स्पष्ट रूप से अष्ट-प्रातिहार्यों से सम्बद्ध एक संस्कृत पद्य उद्धृत किया हुआ मिलता है । ठीक यही पद्य हरिभद्र ने फिर अनेकान्तजयपताका की स्वोपज्ञवृत्ति (प्राय: ईस्वी ७६०-७७०) में भी उद्धृत किया है और बाद की श्वेताम्बर टीकाओं में प्रसंगोपात्त वही पद्य उद्धृत होता रहा है । पद्य इस प्रकार है-४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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