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भक्तामर की पद्यसंख्या
श्रीमानतुंग गुरुणा कृत बीज मंत्रः,
यात्रा स्तुतिः किरण पूज्य सुपादपीठः । भक्तिभरो हृदयपूर विशाल गात्रा
कौ धौ दिवाकर समां वनितांजनांहीं ।।३।। त्वं विश्वनाथ पुरुषोत्तम वीतरागः
त्वं जैन राग कथिता शिवशुद्धमार्गा । त्वौच्चाट भंज नव पुःखल दुःखटालान्
त्वं मुक्तिरूप सुदया पर धर्मपालान् ।।४।। "१६ यह चतुष्क अलबत्ता प्रातिहार्य संबद्ध नहीं है, किन्तु बात यहीं तकही नहीं रुकती जाती, एक और भी गुच्छक है । डा० कापड़िया को वह खण्डित रूप में, २.५ पद्य के रूप में मिला था । पर साराभाई नवाब को मन्त्र पोथियों में से वही पूर्णरूपेण मिल गया था । सिर्फ 'दिव्यध्वनि' वाला तीसरा पद्य दोनों में भिन्न प्रकार का है, यथा
"विष्वग्विभोः सुमनस: किल वर्षयन्ति । __ दिग्बन्धना: सुमनस: किमु ते वदन्ति ।। त्वतसङ्गताविहसतां जगती समस्ता
स्त्यामोदिनी विहसता मुदयेन धाम्नः ।।१।। द्वेधापि दुस्तरतमः श्रमविप्रणाशा
त्साक्षात्सहस्रकरमण्डलसम्भ्रमेण । वीक्ष्य प्रभोर्वपुषि कञ्चनकाञ्चनाभं
प्रोद्बोधनं भवति कस्य न मानसाब्जम् ।।२।। भाषाविशेषपरिणामविधौ पटिष्ठो
जीवादितत्त्वविशदीकरणे समर्थः । दिव्यध्वनिर्ध्वनितदिग्वलयस्तवाह
नाकर्षति प्रवरमोक्षपथे मनुष्यान् ।।३।। विश्वैकजैत्रभटमोहमहामहेन्द्रं ।
सद्यो जिगाय भगवान् निगदन्निवेत्थम् । सन्तर्जयन् युगपदेव भयानि पुंसां
मन्द्रध्वनिन्दति दुन्दुभिरुच्चकैस्ते ।।४।।"१७ जो भिन्न पाठान्तर-स्वरूप तीसरा पद्य है वह निम्नलिखित है, और कापड़िया जी को खंडित गुच्छक में वही प्राप्त हुआ था, यथा
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