________________
१४
क्रमांक
१
२
३
४
५
6)
८
९
१०
६ खरतरगच्छीय धर्मवर्धनगणि वीरभक्तामर सं० १७३६ / ई० १६८० तपागच्छीय धीरविमलशिष्य ऋषभ - चैत्यवंदन सं० १७५० / ई० १६९४ ज्ञानविमल
११
१२
कर्त्ता तपागच्छीय हेमविमलसूरि शिष्य विवेकधर्म
१३
तपागच्छीय पद्मसुंदरशिष्य वटपद्रपार्श्वनाथ प्राय: ईस्वी १६वीं शती पूर्वार्ध
राजसुंदर
स्तोत्र ऋषभभक्तामर सं० १६८० / ई० १६२४
खरतरगच्छीय समयसुन्दरगणि
खरतरगच्छीय पद्मसागर
| दादापार्श्वभक्तामर सं० १६८५ / शिष्य राजसागर ई० १६२९ खरतरगच्छीय विनोदप्रमोद-पार्श्वभक्तामर १७वीं शताब्दी शिष्य पं० विनयलाभगणि
( तालिका क्रमांक ३)
रचना
रचनाकाल
टिप्पणी पार्श्वभक्तामर प्राय: ईस्वी १६ शताब्दी यह वरकाणा के | पार्श्वनाथ के आधार
का अन्तभाग
पर बनाया गया है ।
पौर्णिमिक भावप्रभसूरि
तपागच्छीय कीर्तिविमलशिष्य लक्ष्मीविमल
मतिवर्धन
लोकागच्छीय खेमकर्णशिष्य सरस्वतीभक्तामर (ईस्वी १७वीं शताब्दी ? ) धर्मसिंह
आञ्चलिक विवेकचन्द्र
गुणविजय
Jain Education International
मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र
पादपूर्त्यात्मकस्तोत्र १७वीं शताब्दी उत्तरार्ध
पुष्पदन्तसुविधि - १७ -
१८ शताब्दी
भक्तामर
नेमिभक्तामर सं० १७८४ / ई० १७२८/
शान्तिभक्तामर सं० १७९० / ई०, १७३४
भक्तामरपादपूर्ति १७वीं - १८वीं शताब्दी
For Private & Personal Use Only
शत्रुंजयगिरि - ऋषभ को उद्देशित
www.jainelibrary.org