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________________ पुरोवचन ईश्वर के तीन रूप हैं-कर्ता, संहारक और संरक्षक । इनमें से जैनों ने प्रथम दो को कभी नहीं अपनाया । तीसरे रूप के विषय में भी देखा जाय तो भगवान् महावीर की सर्वप्रथम जो स्तुति सूत्रकृतांग के छठे अध्ययन में 'वीरत्थुती' के नाम से है उसमें तीनो रूपों का अभाव है तथा उनके स्थान पर ज्ञान, दर्शन और शील इन तीन गुणों की स्तुति की गई है । उसके बाद व्याख्याप्रज्ञप्ति के 'नमोत्थु नं' तथा आवश्यक सूत्र के 'लोगस्स' स्तव में ईश्वर के प्रथम दो रूपों के विषय में कोई स्तुति नहीं मिलती है किन्तु उनसे बोधि एवं सिद्धि लाभ की कामना की गई है । इसमें ईश्वर के तीसरे रूप संरक्षकत्व का समर्थन किया गया है । भक्तामर स्तोत्र में भी ज्ञान, दर्शन और शील की प्रशंसा तो की ही गई है तदुपरांत ईश्वर के संरक्षणात्मक रूप की विशेष रूप से स्तुति की गई है । उसके बाद की जैन स्तुतियों में भी इस रूप का समर्थन प्रचुर मात्रा में दिखाई देता है । शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर ने भक्तामर एवं नमिउणस्तोत्र का (संस्कृत छाया के साथ) प्रकाशन किया है, यह एक स्तुत्य प्रयत्न है । इस संस्करण की विशेषता, इसमें भक्तामर के जो विस्तृत भूमिकारूपेण आठ प्रकरणे दिये गये है, वह है । भूमिका संपादकों ने लिखी है और इस स्तोत्र के विषय में जितने भी विवाद अभी तक प्रकाशित हुए हैं, इन विवादों का सही समाधान देने का प्रयास वहाँ किया गया है । विवाद का जो मुख्य विषय है, वह एक है कि भक्तामर के रचयिता श्वेताम्बर थे या दिगम्बर, मूल स्तोत्र की श्लोक संख्या ४४ है या ४८ तथा कृति को श्वेताम्बर माना जाय या दिगम्बर । इन सभी समस्याओं का उचित समाधान करने का प्रयत्न यहाँ किया गया है और आज तक विवादों के पक्ष या विपक्ष में जो युक्तियाँ दी गई हैं, उन पर विचार करके समाधान यह दिया है कि कवि मानतुंग किस सम्प्रदाय के थे, मूल स्तोत्र कितने पद्यों का था और कृति किस सम्प्रदाय के विशेष अनुरूप है, और कर्ता मानतुंगाचार्य का क्या समय रहा होगा । इस मन्तव्य के समर्थन में जो युक्तियाँ दी गई हैं, वे जचती हैं । विद्वज्जगत् इन समस्याओं के विषय में विचार करे और सही निर्णय पर पहुँचे यही अपेक्षा है । ता० २०-६-१९९३ दलसुख मालवणिया 'माथुरी' ८, ओपेरा सोसायटी, पालडी, अहमदाबाद - ३८० ००७. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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