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थी। “हर्मण्” ऐसी विवर्तनी स्वयं यकोबी महोदय की ही बताइ गई थी ऐसा (स्व०) ही० र० कापड़ीया का अवलोकन के प्रति हमने डाक्टर साहब का ध्यान खींच दिया था । कुछ माह पूर्व हमने डा० बंसीधर भट्ट, जो जर्मनी में कई सालों तक म्युन्स्टर विश्वविद्यालय में प्राध्यापक रह चुके है, उन्होंने हमें 'हॅरमन्न' रूप सूचित किया था । अतएव हमने अब इस रूप का प्रयोग किया है । ठीक इसी तरह प्रथमावृत्ति में ‘यकोबी' रूप था, इसको वहाँ की उच्चारण प्रथा अनुसार 'याकोबी' रूप स्वीकार किया है । दूसरी बात यह की हमारी इच्छा संविधान में राष्ट्रभाषा सम्बन्ध जो निदेशक प्रावधान है, उसके अनुसार चलना था, किसी प्रान्तविशेष की क्षेत्रीय, अत्यधिक एवं केवल संस्कृतमय, हिन्दी का अनुसरण करना नहीं चाहते थे । डाक्टर साहब खुदने ‘अहमियत' जैसे शब्द का यहाँ प्रयोग किया ही है । एक बात और भी कहना चाहेंगे । हम अपने को निग्रन्थ-दर्शन का अनुयायी मानते हैं, किसी संप्रदाय-विशेष का पक्षधर नहीं । अत: हमने जो कुछ कहा है वह प्रमाणों के आधार तटस्थ रह कर कहा है ।
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