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________________ अन्वेषण करना पड़ता है, भावुकता और भावनाप्रधान चिन्तन को दूर रखकर उसे कठोर सत्य और सीधे सादे सरल चिन्तन को स्वीकार करना पड़ता है । सुखद कल्पना और इच्छाजनित धारणाओं के प्रलोभनों के जाल में वह नहीं फँसता । मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र नामक ग्रन्थ जिसका संपादन विद्वद्वर्य प्रा० मधुसूदन ढांकी और To जितेन्द्र शाह ने किया है और जिसका प्रकाशन शारदाबेन चिमनभाई एज्युकेशनल रिसर्च सेन्टर, अहमदाबाद की ओर से किया गया है, पाठकों के समक्ष है । विद्वान् संपादकों ने अति परिश्रमपूर्वक प्रास्ताविक, भूमिका, भक्तामरस्तोत्र के सर्जक एवं सर्जन कथा, भक्तामर की पद्य संख्या, भक्तामर का अंतरदर्शन, भयहरस्तोत्र, भक्तामर एवं भयहर के अष्टमहाभय, स्तोत्रकर्त्ता का समय, स्तोत्रकर्त्ता का संप्रदाय, परिशिष्ट और संदर्भ ग्रन्थ-सूची— इन अनेक विभागों में ग्रन्थ को विभक्त किया है । अंत में भक्तामरस्तोत्र और भयहरस्तोत्र ( नमिऊण स्तोत्र ) प्राकृत में (संस्कृत छाया के साथ) प्रस्तुत किया गया है। हमारा विश्वास है कि विज्ञ पाठक इस रचना का मनोयोगपूर्वक अध्ययन कर अपने विचारों में दृढ़ता लायेंगे । हमारी राय में इस बात की अहमियत नहीं कि मूल कर्त्ता किस संप्रदाय के थे, अहमियत इस बात की है कि उनकी लेखनी से ऐसी सुफला एवं शाश्वत रचना का प्रादुर्भाव हुआ है जो केवल जैन संप्रदाय के अनुयायियों को ही नहीं, इतर संप्रदायों को मानने वालों को भी चिरकाल तक अनुप्राणित करती रहेगी । पुस्तक में कतिपय अक्षम्य अशुद्धियाँ रह गई हैं (जैसे हर्मण् आदि) । आशा है पुस्तक के दूसरे संस्करण में उनका संशोधन किया जा सकेगा । 'प्रास्ताविक' में कथन है: “इस ग्रन्थ में प्रयुक्त हिन्दी को सर्वथा संस्कृतप्रधान, एकांत संस्कृतनिष्ठ नहीं अपितु प्रायः राष्ट्रभाषा के आदर्शों के अनुरूप एवं अनुकूल स्वरूप देना चाहा था । इसलिये इसमें अरबी-फारसी अलफाज़ वर्जित नहीं माना है । जहाँ योग्य हिन्दी शब्द नहीं मिल पाये वहाँ कहीं-कहीं गुजराती एवं मराठी भाषा में प्रचलित शब्दों का भी इस्तेमाल किया है और कोष्ठक में उनका अंग्रेजी पर्याय बता दिया है । एकाध दृष्टांत में अंग्रेजी से भी शब्द यथातथ ग्रहण किया है" । जो कुछ भी हो, पुस्तक में जैसी चाहिये वैसी एकरूपता नहीं आ पाई और प्रवाह की गति से भी वह वंचित रह गई । १-११-१९९३ जगदीशचन्द्र जैन १ / ६४, मलहार को-आपरेटिव हाउसिंग सोसायटी, बान्द्रा रीक्लेमेशन, बान्द्रा पश्चिम, मुंबई- ४०००५० संपादक की टिप्पणी दुर्भाग्यवश डाक्टर साहब को जल्दबाजी में कॉम्प्यूटर से निकाला गया पहला मुसद्दा ही पूर्वावलोकन लिखने के लिए भेज दिया गया, और उसमें काफ़ी गलतियाँ थी ही, जो बाद के प्रूफ में सुधार दी गयी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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