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________________ स्तोत्रकर्ता का समय मानतुंगाचार्य, सिद्धसेन दिवाकर (प्राय: ईस्वी पंचम शती पूर्वार्ध) के पश्चात् हुए होंगे । भक्तामर में जिनेन्द्र के विहार के समय पद-पद पर देवसर्जित कमल का आविर्भाव होना उल्लिखित है । यथा : उन्निद्र हेमनवपङ्कजपुञ्जकान्ति पर्युल्लसन्नखमयूखशिखाऽभिरामौ । पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र ! धत्तः पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ।। __ - भक्तामरस्तोत्र-३२ यद्यपि आगमोक्त ३४ अतिशयों में इसकी गिनती नहीं की गई है पर अन्यत्र इसी मान्यता का उल्लेख पउमचरिय (प्राय: ईस्वी ४७३) में हुआ है२३ । यथा : जतो ठवेइ चलणे तत्तो जायन्ति सहसपत्ताई । - पउमचरिय २.३१. दिगम्बर परम्परा में भी ३४ अतिशयों में भूमि पर माने जानेवाले कमल विहार की गिनती नहीं है । वहाँ तीर्थंकरों का “नभोविहार" माना गया है और समन्तभद्र ने भी आप्तमीमांसा की आरम्भिक कारिका में उसका “नभोयान" के रूप में उल्लेख किया है२४ । परन्तु ग्रन्थान्तरेण स्वयंभूस्तोत्र में जिन पद्मप्रभ उद्देशित पद्यों में नभस्थान में सहस्रपत्र-कमल के गर्भ में चरण रखते हुए जिनदेव के विहार का उन्होंने उल्लेख किया है.५ और साथ ही भूमि पर विहार का भी । यथा : नभस्तलं पल्लवयन्निवं त्वं सहस्रपत्राऽम्बुज-गर्भचारैः । पादाऽम्बुजैः पातित-मार-दर्पो भूमौ प्रजानां विजहर्य भृत्यै ? ।। - स्वयम्भूस्तोत्र २९ इससे ऐसा लगता है कि भक्तामरकार मानतुंग पउमचरिय के कर्ता विमलसूरि के बाद और संभवत: समन्तभद्र के समकालीन रहे हों । यदि ऐसा हो तो मानतुंगाचार्य का इस तरह सरसरी तौर पर बाण या मयूर या दोनों के समकालीन होना संभावित हो सकता है । दन्तकथा में भले तथ्य न हो पर इन तीनों के बीच जो समकालीनत्व की कल्पना की गई है, उसमें आकस्मिक रूप से कुछ तथ्य हो सकता है । अलबत्ता मानतुंग का श्री हर्ष की सभा से कोई सम्बन्ध रहा हो ऐसा प्राचीन प्रमाण उपलब्ध नहीं है या बाण, मयूर एवं भक्तामरकार की शैली के बीच खास या विशेष साम्य नहीं है । मयूर की शब्दाडम्बरी, समासबहुल, अलंकारप्रचुर एवं जटिल गौडीरीति की तुलना में मानतुंगाचार्य की रीति वैदर्भीप्राय: है और वहाँ ओज और कान्ति होते हुए भी प्रधानता प्रसाद गुण और स्फोटात्मक घोषप्रतिघोष की है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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