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________________ मानतुंगाचार्य और उनके स्तोत्र सचि दारुमयैरयोमयैर्हडिनिगडैरिह बद्ध बन्धनैः । स्मरतो अवलोकितेश्वरं क्षिप्रमेव विपटन्ति बन्धना ।।११।। मन्त्रावलविद्य औषधी भूतवेताल शरीरनाशका । स्मरतो अवलोकितेश्वरं तान् गच्छन्ति यत: प्रवर्तिता ।।१२।। सचि ओजिहरैः परीवृतो नागयक्षसुरभूतराक्षसैः ।। स्मरतो अवलोकितेश्वरं रोमकूप न प्रभोन्ति हिंसितुम् ।।१३।। सचि व्याडमृगैः परीवृतस्तीक्ष्ण दंष्ट्रनखरैर्महाभयैः ।। स्मरतो अवलोकितेश्वरं क्षिप्र गच्छन्ति दिशा अनन्तत: ।।१४।। सचि दृष्टिविषैः परीवृतो ज्वलनार्चिशिखिदुष्टदारुणैः । स्मरतो अवलोकितेश्वरं क्षिप्रमेव ते भोन्ति निर्विषाः ।।१५।। गम्भीर सविघु निश्चरी मेघवज्राशनि वारिप्रस्रवाः । स्मरतो अवलोकितेश्वरं क्षिप्रमेव प्रशमन्ति तत्क्षणम् ।।१६।। (बौद्ध साहित्य के विद्वानों ने इस पाठ का समय ईस्वी तीसरी-चौथी शताब्दी के बाद का नहीं माना है ।) अवलोकितेश्वर अतिरिक्त महायानिक सम्प्रदाय में तारा भगवती की अष्टभय से मुक्त कराने वाली शक्ति के रूप में स्तुति एवं साधना की जाती है, और अवलोकितेश्वर की तरह उनका भी महाभयतारिणी के रूप में प्राचीन शिल्पो में अंकन हुआ है२३ । देवी तारा को सम्बोधित अनेक स्तोत्रों में कश्मीर के बौद्ध कवि एवं साधक सर्वज्ञमित्र का स्रग्धरास्तोत्र (प्राय: ८वीं शती पूर्वार्ध) बहुत ही प्रसिद्ध है । धारावाही, शक्तिपूत और परम तेजस्वी इस स्तोत्र के अष्टमहाभयत्राण-सम्बद्ध पद्यों को यहाँ पेश करेंगे । कल्पान्तोद्धान्तवातभ्रमितजलचलल्लोलकल्लोल हेला । संक्षोभोत्क्षिप्तवेलातटविकटचटत् स्फोटमोट्ठाट्टहासात् । मजद्भिर्भिन्ननौकैः सकरुणरुदिता क्रन्दनिष्पन्द मन्दैः । स्वच्छन्दं देवि सद्यस्त्वदभिनुतिपरस्तीरमुत्तीर्यतेऽब्धेः ।।१०।। धूम्रभ्रान्ताभ्रगर्भोद्भवगगन गृहोत्सङ्गरिङ्गत्स्फुलिङ्ग । स्फूर्जज्ज्वालाकरालज्वलनजवविशद्वेश्मविश्रान्तशय्याः । त्वय्याबद्धप्रणामाञ्जलिपुटमुकुटा गद्गदोद्गीतयाच्ञाः । प्रोद्यद्विद्युद्विलासोज्ज्वलजलदजवैराध्रियन्ते क्षणेन ।।११।। दानाम्भः पूर्यमाणोभयकटकटकालम्बिरोलम्बमाला । हूङ्काराहूयमान प्रतिगजजनित द्वेषवटेर्द्विपस्य । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002107
Book TitleMantungacharya aur unke Stotra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorM A Dhaky, Jitendra B Shah
PublisherShardaben Chimanbhai Educational Research Centre
Publication Year1999
Total Pages154
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size8 MB
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