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[ ७ ] इसी प्रकार कोलब्रुक, स्टीवेन्सन,27 एडवर्ड टामस, गेरी नाट, इलियट,30 पुसिन,31 डा० बेलवलकर, 2 डा० दासगुप्ता,33 डा० राधाकृष्णन्,34 एवं मजुमदार 5 ने पार्श्वनाथ को महावीर के पूर्ववर्ती निर्ग्रन्थ परम्परा का नायक माना है और इस प्रकार उनकी ऐतिहासिकता को स्वीकार किया है। जैन परम्परा में पार्श्वनाथ का स्थान
सामान्य जैनों में आज भी पार्श्वनाथ के प्रति जो आस्था देखी जाती है वह अन्य किसी तीर्थंकर के प्रति नहीं देखी जाती है । चरम तीर्थंकर स्वयं महावीर के प्रति भी उतनी आस्था नहीं है, जितनी पार्श्व के प्रति है। यद्यपि सिद्धान्ततः यह माना जाता है कि सभी तीर्थंकर समान हैं, फिर भी जिस तीर्थंकर का शासन होता है उसकी उस काल में विशेष प्रतिष्ठा रहती है, किन्त आज जैन परम्परा में विशेष रूप से जैन उपासकों के हृदय में पार्श्वनाथ के प्रति जितनी अधिक श्रद्धा और आस्था है, उतनी महावीर के प्रति भी नहीं देखी जाती है। यदि हम जैन तीर्थों और तीर्थंकर-प्रतिमाओं का ही एक सर्वेक्षण करें तो हमें स्पष्ट रूप से यह ज्ञात हो जायेगा कि देश में आज भी सर्वाधिक तीर्थ और सर्वाधिक प्रतिमायें भी पार्श्वनाथ की हैं। शंखेश्वर पार्श्वनाथ, गौड़ी पार्श्वनाथ, चिन्तामणि पार्श्वनाथ, अमीझरा पार्श्वनाथ, अन्तरिक्ष पार्श्वनाथ, अवन्तिका पार्श्वनाथ, मक्षी पार्श्वनाथ आदि को जैन उपासक आज भी अत्यन्त श्रद्धा के साथ पूजता है। ___ स्वाभाविक रूप से यह प्रश्न उठता है कि आखिर महावीर की अपेक्षा पार्श्वनाथ की जैन परम्परा में इतनी अधिक प्रतिष्ठा क्यों है ? इस प्रश्न का सैद्धान्तिक उत्तर तो यह दिया जाता है कि सभी तीर्थकर, तीर्थंकर नाम कर्म का उपार्जन करके तीर्थंकर पद को प्राप्त करते हैं, किन्तु सभी तीर्थंकरों का तीर्थंकर-नाम-कर्म समान नहीं होता, किसी का तीर्थंकर नाम-कर्म विशिष्ट होता है और इसी कारण वह तीर्थंकर संघ में विशिष्ट रूप से पूजा और प्रतिष्ठा पाता है । परम्परागत मान्यता के अनुसार पार्श्वनाथ का तीर्थंकर नामकर्म अन्य तीर्थंकरों की अपेक्षा विशिष्ट था और इसीलिए उनकी पूजा और प्रतिष्ठा अधिक है।
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