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________________ [ ६ ] भगवती आदि आगम ग्रन्थों से स्पष्ट होता है कि महावीर के समय में पापित्य पर्याप्त संख्या में उपस्थित थे। ऋषिभाषित एवं भगवती आदि के आधार पर यह भी स्पष्ट लगता है कि महावीर ने तत्त्वज्ञान सम्बन्धी अनेक अवधारणायें यथावत् रूप से पापित्यों से ग्रहण की थी। भगवती में लोक की नित्यता और कालचक्र की अनन्तता के सम्बन्ध में महावीर ने पाश्वपित्यों की अवधारणा का समर्थन करते हुए स्पष्ट रूप से यह कहा था कि मैं भी यही मानता हूँ। ऋषिभाषित से स्पष्ट हो जाता है कि अस्तिकाय और अष्टविध कर्म-ग्रन्थियों की मान्यता मूलतः पापित्यों की ही थी,22 जिसे आगे चलकर महावीर की परम्परा में स्वीकार कर लिया गया था । इन सब आधारों पर हम पात्र की ऐतिहासिकता को निर्विवाद रूप से स्वीकार कर सकते हैं। पार्जनाथ की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में जो प्रमाण प्रस्तुत किये गये हैं उनसे स्पष्ट रूप से यह निष्कर्ष निकलता है कि पार्श्व एक काल्पनिक व्यक्ति नहीं, अपितु ऐतिहासिक व्यक्ति थे। अनेक पौर्वात्य और पाश्चात्य विचारकों ने पार्श्व की ऐतिहासिकता को निर्विवाद रूप से स्वीकार किया है । डा० हरमन जेकोबी ने पार्श्व की ऐतिहासिकता को स्वीकार किया है। वे लिखते हैं कि पान एक ऐतिहासिक व्यक्ति थे इस सम्भावना को अब सभी लोगों के द्वारा स्वीकार कर लिया गया है। 'डा० चार्ल शान्टियर उत्तराध्ययनसूत्र की भूमिका में लिखते हैं कि जैनधर्म निश्चित रूप से महावीर से प्राचीन है। उनके प्रख्यात पूर्वगामी पार्ग प्रायः निश्चित रूप से एक वास्तविक व्यक्ति के रूप में अस्तित्ववान् थे। प्रौ० ए० एल० बाशम पान की ऐतिहासिकता के सम्बन्ध में लिखते हैं कि वर्धमान महावीर को पालि त्रिपिटक में बुद्ध के प्रतिस्पर्धी के रूप में चित्रित किया गया है अतः उनकी ऐतिहासिकता असन्दिग्ध है। पान का भी चौबीस तीर्थंकरों में तेईसमें तीर्थंकर के रूप में स्मरण किया जाता है। अतः वे भी ऐतिहासिक व्यक्ति रहे होंगे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002104
Book TitleArhat Parshva aur Unki Parampara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSagarmal Jain
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1988
Total Pages86
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, Mythology, & Literature
File Size4 MB
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