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बलात्कारगण के ईडर शाखा के आचार्य सकलकीर्ति माने गये हैं । ग्रंथ का रचनाकाल ईसा की चौदहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध माना जा सकता है।
(१३) पासनाहचरिउ रइधू :- अपभ्रंश भाषा में निबद्ध इस ग्रन्थ में ७ संधियाँ हैं । इसकी कथावस्तु परम्परागत है । ग्रन्थ के रचनाकार दिगम्बर परम्परा के काष्ठासंघ के माथुरगच्छीय पुष्करगणशाखा से सम्बद्ध महाकवि रघू हैं । इनका समय ई० सन् १४०० से १४७९ के मध्य माना जाता है ।
(१४) पासनाहचरिउ : असवाल - अपभ्रंश भाषा से निबद्ध इस ग्रंथ में १३ सन्धियाँ हैं । इसकी कथावस्तु पारम्परिक ही है । ग्रंथ अभी तक अप्रकाशित है । इसकी एक प्रति अग्रवाल दिगम्बर जैन मन्दिर, मोती कटरा, आगरा में उपलब्ध है । इस ग्रंथ के रचनाकार असपाल कवि गृहस्थ थे, किन्तु दिगम्बर परम्परा के मूल संघ के बलात्कार गण से सम्बन्धित थे । इस ग्रन्थ का रचनाकाल ई० सन् १४८२ है ।
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(१५) पासपुराण: तेजपाल - यह ग्रन्थ एवं अभी तक अप्रकाशित है । इसकी हस्तलिखित प्रति अजमेर और जयपुर के ग्रंथ भण्डारों में उपलब्ध हैं । आमेर शास्त्र भण्डार, जयपुर में उपलब्ध इसकी प्रति पर रचनाकाल वि० सं० १५१६ अर्थात् ई० सन् १४५८ उल्लिखित है । इसके लेखक कवि तेजपाल ने इसकी रचना मूलसंघ के पद्मनन्दिन के शिष्य शिवनन्दि भट्टारक के निर्देश से की थी ।
(१६) पासनाहकाव्यः पद्मसुन्दरगणि - यह कृति संस्कृत भाषा में निबद्ध है । इसके रचनाकार श्वेताम्बर परम्परा के तपागच्छ की नागोरी शाखा के पद्मसुन्दर गणि हैं । ये जोधपुर नरेश मालदेव द्वारा सम्मानित थे । ये ईसा के सोलहवीं शताब्दी के विद्वान् हैं । अतः ग्रंथ का रचनाकाल भी यही होना चाहिए ।
(१७) पार्श्वनाथचारित्र : हेमविजय - प्रस्तुत कृति संस्कृत भाषा में निबद्ध है । इसमें ६ सर्ग और ३०३६ श्लोक हैं । ग्रन्थ की कथावस्तु परम्परागत है । इसके रचयिता श्वेताम्बर परम्परा के कमल
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